लोगों की राय

श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: author_hindi

Filename: views/read_books.php

Line Number: 21

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद्गीता भाग 3

(यह पुस्तक वेबसाइट पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है।)


यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।13।।

यज्ञ से बचे हुए अन्न को खानेवाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं और जो पापी लोग अपना शरीर-पोषण करने के लिये ही अन्न पकाते हैं, वे तो पाप को ही खाते हैं।।13।।

हममें से कुछ व्यक्ति केवल भोजन के लिए जीवन जीते हैं, इस प्रकार के लोगों का जीवन पशुओं से भी निकृष्ट है। हम सभी जानते हैं कि पशुओं में बुद्धि और मन का स्तर मनुष्यों की अपेक्षाकृत बहुत निम्न होता है, इसलिए यदि वे केवल शरीर के लिए जीवन जीते हैं, तब यह बात तो समझ में आती है, परंतु मनुष्य विकास की सीढ़ी में बहुत आगे बढ़ चुका है। विशेष कर सन्त व्यक्ति जो कि समबुद्धि के स्वामी होते हैं, उनका साधारण कर्तव्य है कि वे सभी कर्म यज्ञ भाव से करें और इसके पश्चात् शेष बचे हुए अन्न को ग्रहण करें, क्योंकि केवल शरीर के लिए जीवन जीना पाप का भागी बनना है।

...Prev | Next...

To give your reviews on this book, Please Login