लोगों की राय

श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: author_hindi

Filename: views/read_books.php

Line Number: 21

निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)

वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।


चौ.-प्रातकाल सरजू करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन।।
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि जब जानहिं।।1।।

प्रातः काल सरयू में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनोंके साथ सभा में बैठते हैं। वसिष्ठजी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्रीरामजी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं।।1।।

अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं।।
भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई।।2।।

वे भाइयों को साथ लेकर भोजन करते हैं। उन्हें देखकर सभी माताएँ आनन्द से भर जाती है। भरतजी और शत्रुघ्नजी दोनों सहित हनुमान् जी सहित उपवनों में जाकर।।2।।

बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा।।
सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं।।3।।

वहाँ बैठकर श्रीरामजी के गुणोंकी कथाएँ पूछते हैं औऱ हनुमान् जी अपनी सुन्दर बुद्धिसे उन गुणोंमें गोता लगाकर उनका वर्णन करते हैं। श्रीरामचन्द्रजी के निर्मल गुणोंकोसुनकर दोनों भाई अत्यन्त सुख पाते हैं और विनय करके बार-बार कहलवाते हैं।।3।।

...Prev | Next...

To give your reviews on this book, Please Login