श्रीरामचरितमानस (लंकाकाण्ड)
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
श्रीरामचरित की महिमा
छं०-लियो हृदयँ लाइ कृपा निधान सुजान रायँ रमापती।
बैठारि परम समीप बूझी कुसल सो कर बीनती॥
अब कुसल पद पंकज बिलोकि बिरंचि संकर सेब्य जे।
सुख धाम पूरनकाम राम नमामि राम नमामि ते॥
सुजानोंके राजा (शिरोमणि), लक्ष्मीकान्त, कृपानिधान भगवान ने उसको हृदय से लगा लिया और अत्यन्त निकट बैठाकर कुशल पूछी। वह विनती करने लगा आपके जो चरणकमल ब्रह्माजी और शङ्करजीसे सेवित हैं, उनके दर्शन करके मैं अब सकुशल हूँ। हे सुखधाम! हे पूर्णकाम श्रीरामजी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ॥१॥
सब भाँति अधम निषाद सो हरि भरत ज्यों उर लाइयो।
मतिमंद तुलसीदास सो प्रभु मोह बस बिसराइयो।
यह रावनारि चरित्र पावन राम पद रतिप्रद सदा।
कामादिहर बिग्यानकर सुर सिद्ध मुनि गावहिं मुदा॥
मतिमंद तुलसीदास सो प्रभु मोह बस बिसराइयो।
यह रावनारि चरित्र पावन राम पद रतिप्रद सदा।
कामादिहर बिग्यानकर सुर सिद्ध मुनि गावहिं मुदा॥
सब प्रकार से नीच उस निषादको भगवान ने भरतजी की भाँति हृदय से लगा लिया। तुलसीदासजी कहते हैं-इस मन्दबुद्धि ने (मैंने) मोहवश उस प्रभुको भुला दिया। रावणके शत्रुका यह पवित्र करनेवाला चरित्र सदा ही श्रीरामजीके चरणोंमें प्रीति उत्पन्न करनेवाला है। यह कामादि विकारोंका हरनेवाला और [भगवानके स्वरूपका] विशेष ज्ञान उत्पन्न करनेवाला है। देवता, सिद्ध और मुनि आनन्दित होकर इसे गाते हैं॥ २॥
दो०- समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥१२१ (क)॥
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥१२१ (क)॥
जो सुजान लोग श्रीरघुवीरकी समरविजयसम्बन्धी लीलाको सुनते हैं, उनको भगवान नित्य विजय, विवेक और विभूति (ऐश्वर्य) देते हैं॥ १२१ (क)॥
यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।
श्रीरघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥१२१ (ख)॥
श्रीरघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥१२१ (ख)॥
अरे मन! विचार करके देख! यह कलिकाल पापोंका घर है। इसमें श्रीरघुनाथजीके नामको छोड़कर [पापोंसे बचनेके लिये] दूसरा कोई आधार नहीं है। १२१ (ख)॥
मासपारायण, सत्ताईसवाँ विश्राम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने षष्ठः सोपान: समाप्तः।
कलियुगके समस्त पापोंका नाश करनेवाले श्रीरामचरितमानसका यह छठा सोपान समाप्त हुआ।
((लङ्काकाण्ड समाप्त))
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने षष्ठः सोपान: समाप्तः।
कलियुगके समस्त पापोंका नाश करनेवाले श्रीरामचरितमानसका यह छठा सोपान समाप्त हुआ।
((लङ्काकाण्ड समाप्त))