श्रीरामचरितमानस अर्थात् तुलसी रामायण बालकाण्ड)
A PHP Error was encounteredSeverity: Notice Message: Undefined index: author_hindi Filename: views/read_books.php Line Number: 21 |
निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस अर्थात् तुलसी रामायण बालकाण्ड) |
गोस्वामी तुलसीदास कृत रामायण को रामचरितमानस के नाम से जाना जाता है। इस रामायण के पहले खण्ड - बालकाण्ड में भी मनोहारी कथा के साथ-साथ तत्त्व ज्ञान के फूल भगवान को अर्पित करते चलते हैं।
रामरूप से जीवमात्र की वन्दना
जगत में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, सब को राममय जानकर मैं उन सबके चरणकमलों की सदा दोनों हाथ जोड़कर वन्दना करता हूँ॥७(ग)॥
देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सब।।७(घ)॥
देवता, दैत्य. मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गन्धर्व, किन्नर और निशाचर
सबको मैं प्रणाम करता हूँ। अब सब मुझपर कृपा कोजिये॥७(घ)॥ बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सब।।७(घ)॥
आकर चारि लाख चौरासी।
जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।
चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव
जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं. उन सबसे भरे हुए इस सारे जगत को
श्रीसीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ॥१॥जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।
जानि कृपाकर किंकर मोहू।
सब मिलि करहु छाडि छल छोहू।
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं।
तातें बिनय करउँ सब पाहीं॥
सब मिलि करहु छाडि छल छोहू।
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं।
तातें बिनय करउँ सब पाहीं॥
To give your reviews on this book, Please Login