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उपयोगी हिंदी व्याकरण

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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक

वाच्य और अन्विति

वाच्य


हम जब किसी भाषा का प्रयोग करते हैं तब हमारे पास कुछ कथ्य, अर्थात् कहे जाने वाली बात होती है। कथ्य एक वाक्य से भी कहा जा सकता है और अनेक वाक्यों से भी; किंतु हर वाक्य में कथ्य का कोई-न-कोई बिंदु अवश्य होता है, जिसे वक्ता कुछ प्रधानता दे कर स्पष्ट करना चाहता है। वाच्य (शाब्दिक अर्थ — बोलने का विषय) की भूमिका यहीं आती है। वाच्य इस बात का संकेत देता है कि वक्ता इस वाक्य में किस कथ्यबिंदु को प्रधानता दे रहा है। उदाहरणार्थ— नेहा पढ़ रही है।  वाक्य से स्पष्ट होता है कि कथ्यबिंदु नेहा के विषय में कुछ बोला जा रहा है। इसी प्रकार मान लीजिए कि बगल के कमरे में अमित पढ़ रहा है और बिल्ली भी वहाँ घूम रही है; अचानक माँ को गिलास टूटने की आवाज आई। माँ का कथ्यबिंदु यदि अमित है तो कहेगी अरे! अमित ने गिलास तोड़ दिया; यदि वाच्यबिंदु बिल्ली है तो कहेगी अरे! बिल्ली ने गिलास तोड़ डाला और यदि वाच्यबिंदु ग्लास है तो कहेगी अरे! गिलास टूट गया। इस प्रकार वाच्य रचना में वाच्य यह बताता है कि वाक्य में स्थित कर्ता कर्म या क्रिया — इनमें से किस वक्ता ने कथ्यबिंदु बनाया है तथा प्रधानता दी है। चूँकि वाच्य कर्ता या कर्म या क्रिया भाव के संबंध में ही बताता है इसलिए वाच्य के तीन भेद होते हैं

1. कर्तृवाच्य: जहाँ वाच्य केंद्र, अर्थात् वक्ता का कथ्य बिंदु, कर्ता है। जैसे —

बच्चे खेल रहे हैं।
रमेश ने किताब पढ़ ली है।
श्याम को ज्वर आ रहा है।

2. कर्मवाच्य: जहाँ वाच्य केंद्र, अर्थात् वक्ता का कथ्यबिंदु, कर्म है; जैसे —

रमेश से अब दूध पिया नहीं जा हा है।
दवाई  दे दी गई है।
पतंग  बहुत अच्छी तरह उड़ रही है।

3. भाववाच्य: जहाँ वाच्य केंद्र अर्थात् वक्ता का कथ्यबिंदु, क्रिया है। जैसे —

मुझसे अब चला नहीं जाता।
गर्मियों में खूब नहाया जाता है।

कर्तवाच्य में सकर्मक और अकर्मक दोनों ही प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग होता है। कर्मवाच्य में सकर्मक क्रिया का और भाववाच्य में अकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है। कर्मवाच्य में सकर्मक क्रिया का और भाववाच्य में अकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है।

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