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उपयोगी हिंदी व्याकरण

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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक

प्रत्यय


संस्कृत में प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं — एक वे हैं, जो क्रियाधातु के बाद लगकर संज्ञा और विशेषण बनाते हैं (इन्हें कृत प्रत्युय कहते हैं) और दूसरे वे जो संज्ञा आदि के बाद लगकर प्रायः संज्ञा और विशेषण बनाते हैं (इन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं)। उदाहरणार्थ — होनहार, पढ़ाई, सजावट, वक्तव्य पठनीय आदि में कृत प्रत्यय लगे हैं, और बचपन, नमकीन, कोठरी, घरेलू आदि में तद्धित प्रत्यय लगे हैं।

कृत प्रत्यय

कृत प्रत्यय से बने शब्दों को कृदन्त कहते हैं। उदाहरणार्थ कर्तव्य एक कृदंत शब्द है; जहाँ संस्कृत प्रत्यय तव्य संस्कृत धातु कृ (कर्) में लगा है। कृत प्रत्ययों को इस आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है कि क्रिया के साथ कृत प्रत्यय किन-किन दशाओँ में प्रयुक्त होते हैं:

(1) क्रिया को करने वाला (कृत् वाचक संज्ञा) (जो .. को करे)

संस्कृत स्रोत वाले प्रत्यय: — पाठक, कारक, गायक, नायक, नेता, दाता, विक्रेता, अभिनेता, त्यागी, उपकारी, भिक्षुक, भावुक, आदि।

हिंदी स्रोत वाले प्रत्यय:   

हार – खेलनहार, होनहार, देनहारस मरनहार, राखनहार आदि।
ऐया/वैया — गवैया, खिवैया, पढ़ैया
अक्कड़ — भुलक्कड़, पियक्कड़, घुमक्कड़
ऊ  — रट्टू, खाऊ, उड़ाऊ

अन्य: —

दार — (देवदार, लेनदार)
आकू — (लड़ाकू, पढ़ाकू)
आक — (तैराक)
आलू — (झगड़ालू)
इयल — (सड़ियल, अड़ियल)
ने वाला — (पढ़नेवाला आदि)।

(2) क्रिया का कर्म

हिंदी प्रत्ययों से:       

नी — चटनी (जिसे चाटा जाये), ओढ़नी, सूँघनी
ना — खाना (जिसे खाया जाए) बिछौना

(3) क्रिया की प्रक्रिया अथवा परिणाम (भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं)

हिंदी प्रत्ययों से:

ना — लिखना (लिखने की प्रक्रिया) पढ़ना, खाना
आन — उड़ान, मिलान, उठान,
आई — लड़ाई, पढ़ाई, लिखाई
आवट — लिखावट, सजावट, मिलावट
खेल — दौड़, लूट, मार
ई — हँसी, बोली, धमकी

(4) क्रिया करने का साधन (जिस साधन से क्रिया की जाए)

संस्कृत प्रत्ययों से:— अन — श्रवण, करण
हिंदी प्रत्ययों से:

नी — मथानी, धौंकनी, चलनी
ई — रेती, बुहारी, फाँसी
ना — ढकना, बेलना, छन्ना

अन्य:
— कटारी, खुरपा, खिलौना, झाड़ू आदि।

(5) क्रिया करने/होने का स्थान

संस्कृत प्रत्ययों से: — शय्या
हिंदी प्रत्ययों से: — बैठक

(6) क्रिया के योग्य होना (क्रिया करने के योग्य)

संस्कृत प्रत्ययों से:

अनीय — गोपनीय, करणीय, पठनीय
य — देय, पेय, हेय, गेय
व्य — कर्तव्य, लाब्धव्य, मंतव्य

तद्धित प्रत्यय

तद्धित प्रत्यय वे प्रत्यय हैं जो (क्रिया से भिन्न) पदभेदों अर्थात् संज्ञा, विशेषण, सर्वनाम और अव्ययों के बाद लगते हैं और प्रायः संज्ञा और विशेषण बनाते हैं। जैसे –

गरीब > गरीबी,
खेत > खेती,
बाहर > बाहरी,
अपना > अपनापन

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