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उपयोगी हिंदी व्याकरण

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2.    अर्थ की दृष्टि से रचनांतरण


अर्थ की दृष्टि से वाक्यों के आठ भेद होते हैं। इसकी चर्चा अध्याय 12 में कर आए हैं। इन सब वाक्य भेदों में विधान वाचक को मूलाधार रचना माना जाता है, जिसमें कुछ अर्थ वैशिष्ट्य के कारण वाक्य भेद बनते हैं। इस रचनांतरण की प्रक्रिया इस प्रकार है –


विधिवाचक में अंतरण: क्रियारूपावली वर्ग (3) और (4) के क्रियारूपों के प्रयोग से यह अंतरण किया जाता है। जैसे – “मोहन किताब पढ़ता है” “मोहन, किताब पढ़ो”।

प्रश्नवाचक में अंतरण: प्रश्नवाचक की रचना में क आदि प्रश्नद्योती शब्दों क्या, कौन, कब, कहाँ, किधर, कैसे, किसलिए, किस कारण आदि का प्रयोग होता है। यदि पूरे कथन के संबंध में जिज्ञासा है तो वाक्य के आरंभ/अंत में क्या का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ:

मोहन किताब पढ़ रहा है → क्या मोहन किताब पढ़ रहा है?
→ कौन किताब पढ़ रहा है?
→ मोहन क्या पढ़ रहा है?
→मोहन क्या कर रहा है?

इच्छावाचक में अंतरण: क्रिया रूपावली वर्ग (1) के क्रियारूपों के प्रयोग में यह अंतरण किया जाता है। जैसे – “मोहन किताब पढ़ता है” → (मेरी इच्छा है कि) “मोहन किताब पढ़े।

निषेधवाचक में अंतरण: निषेधवाचक के अव्यय हैं – नहीं न और मत। नहीं का प्रयोग सामान्य है – अपवाद है मत और न। मत का प्रयोग निषेधात्मक विधि का आज्ञा में होता है। तू मत जा का तात्पर्य न जाने की आज्ञा है। का प्रयोग रूपावली वर्ग 1 के क्रियारूपों के साथ होता (वह पढ़े – वह न पढ़े) है। का प्रयोग यदि वाले उपवाक्य में नहीं के स्थान पर होता है, जैसे, “यदि वह न आता तो...”

संदेहवाचक में अंतरण: इस अंतरण में रूपावली 13 और 14 का प्रयोग होता है और कभी-कभी शायद आदि का प्रयोग होता है। जैसे – मोहन किताब पढ़ता है → मोहन किताब पढ़ रहा होगा।

संकेतवाचक में अंतरण: इस अंतरण में रूपावली 15 और 16 का प्रयोग होता है। जैसे – मोहन किताब पढ़ता है → मोहन किताब पढ़ता तो/पढ़े तो –

विस्मय उद्गार वाचक में अंतरण: मोहन किताब पढ़ता है।
→   अरे ! मोहन किताब पढ़ता है।
→   अरे ! मोहन किताब पढ़ेगा।

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