आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
इस मन पर नियंत्रण सबसे आवश्यक पुरुषार्थ है। यही हमारी इंद्रियों को भी भड़काता रहता है। स्वादेंद्रियों का संयम हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। जवानी के जोश में हम न जाने क्या-क्या उलटा-सीधा खाते पीते रहते हैं। आरंभ में तो पता नहीं चलता, पर आयु बढ़ने के साथ, 40-45 वर्ष की आयु से शरीर में अनेकानेक रोग फूटने लगते हैं। युवाओं को इस पर विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य ही करना चाहिए।
साधना और संयम द्वारा अपने शरीर और मन को हम हर प्रकार की समस्याओं का सामना करने हेतु भली-भाँति तैयार कर सकते हैं। इसमें स्वाध्याय से हमें बहुत सहायता मिलती है। प्रेरक आदर्श साहित्य अंधेरे में प्रकाश किरण के समान होता है अच्छी पुस्तकों के अध्ययन से तत्काल प्रकाश और उल्लास मिलता है। उनकी आराधना देव प्रतिमाओं के समान करनी चाहिए। स्वाध्याय का एक अर्थ यह भी है कि हम स्वयं का अध्ययन करें। आत्मसमीक्षा करते रहने से हमें यह ज्ञात होता रहता है कि हमारे भीतर कौन-कौन दोष व दुर्गुण हैं। यह जानकर आत्मपरिष्कार करते रहना चाहिए। यदि यह कार्य सतत होता रहे तो हम अनेकानेक बुराइयों से बचे रह सकते हैं। प्रतिदिन सोते समय अपने दिन भर के कार्यों की समीक्षा तो हमें अवश्य ही करनी चाहिए।
साधना, संयम और स्वाध्याय द्वारा अपने व्यक्तित्व का विकास करते हुए सदैव दूसरों की सेवा की भावना ही मन में रखें परोपकार को जीवन का मूल उद्देश्य समझें। हमारे पास जो भी प्रतिभा और क्षमता है, जो भी धन-संपत्ति है, सब हमने समाज के सहयोग से ही अर्जित की है। समाज के इस उपकार का बदला चुकाना हमारा कर्त्तव्य है। निर्बल, निर्धन, पीड़ित लोगों की सेवा में तन-मन-धन से सदैव तत्पर रहें। अपनी कमाई का एक भाग, कम से कम दस प्रतिशत, इस हेतु अवश्य लगाएँ।
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