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आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण

उन्नति के तीन गुण-चार चरण

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :36
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9847
आईएसबीएन :9781613012703

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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।

जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल होने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। अच्छे से अच्छा तैराक भी आत्मविश्वास के अभाव में किसी नदी को पार नहीं कर सकता। वह बीच में ही फँस जाएगा, नदी के प्रवाह में बह जाएगा अथवा हाथ- पैर पटक कर वापस लौट आएगा। जीवन में भी अनेक कठिनाइयाँ, उलझनें, अप्रिय परिस्थितियाँ आती रहती हैं। इन झंझावातों में कठोर चट्टान की तरह अपनी राह पर अडिग रहने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है।

लक्ष्य जितना बड़ा होगा, मार्ग भी उतना ही लंबा होगा और अवरोध भी उतने ही अधिक आएँगे, इसलिए उतने ही प्रबल आत्मविश्वास की आवश्यकता होगी। संसार भी आत्मविश्वासी का समर्थन करता है। आत्मविश्वास चेहरे पर वह आकर्षण बनकर फूट पड़ता है, जिससे पराए भी अपने बन जाते हैं, अनजान भी हमराही की तरह साथ देते हैं। विपरीत परिस्थितियाँ भी आत्मविश्वासी के लिए अनुकूल परिणाम प्रदान करती हैं। संसार में कोई मनुष्य तब तक सफलता प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि उसके मन में यह दृढ़ विश्वास न हो कि मैं जिस काम को करना चाहता हूँ उसमें अवश्य सफल बनूँगा।

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