आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण उन्नति के तीन गुण-चार चरणश्रीराम शर्मा आचार्य
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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।
उन्नति के तीन गुण-चार चरण
आत्मबल
सर्वोपरि सर्वसमर्थ बल का नाम है-आत्मबल। आत्मबल के अभाव में सारी भौतिक सामर्थ्य तथा उपलब्धियां केवल भार बनकर रह जाती हैं। केवल बलवान होना की काफी नहीं, बल का सही दिशा में सदुपयोग होना ही वह कौशल है, जिसके आधार पर समर्थता का लाभ उठाया जा सकता है। अपव्यय अथवा दुरुपयोग से तो बहुमूल्य साधन भी निरर्थक ही नहीं हानिकारक तक बन जाते हैं। अतएव धन, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि शक्तियों के ऊपर नियंत्रण करने और उन्हें सही दिशा में प्रयुक्त करने वाली एक केंद्रीय समर्थता भी होनी चाहिए। कहना न होगा कि इस समर्थता का नाम आत्मबल है।
हमें जानना चाहिए कि मनुष्य केवल एक शरीर मात्र ही नहीं है। उसमें एक परम तेजस्वी आत्मा भी विद्यमान है। हमें जानना चाहिए कि मनुष्य केवल धन, बुद्धि और स्वास्थ्य के भौतिक बलों से ही सांसारिक सुख, संपदा, समृद्धि एवं प्रगति प्राप्त नहीं कर सकता, उसे आत्मबल की भी आवश्यकता है। आत्मा के अभाव में शरीर की कीमत दो कौड़ी की भी नहीं रहती इसी प्रकार आत्मबल के अभाव में शरीर बल मात्र खिलवाड़ बनकर रह जाता है। वह किसी के पास कितनी ही बड़ी मात्रा में क्यों न हों, उससे सुखानुभूति नहीं मिल सकती। वे केवल भार, तनाव, चिंता एवं उद्वेग का कारण बनेंगे और यदि कहीं उनका दुरुपयोग होने लगा, तब तो सर्वनाश की भूमिका ही सामने लाकर खड़ी कर देंगे।
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