नई पुस्तकें >> शुक्रवार व्रत कथा शुक्रवार व्रत कथागोपाल शुक्ल
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इस व्रत को करने वाला कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ व भुने चने रखे, सुनने वाला सन्तोषी माता की जय - सन्तोषी माता की जय बोलता जाये
उसका पति बोला-“अच्छा, खुशी से कर लो।”
वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो रे, भोजन के समय सब लोग खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो। लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरुचि होती है। वह कहने लगी- “भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।”
लड़के उठ खड़े हुए, बोले- “पैसा लाओ।”
भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पेसे दे दिए। लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकठ्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा।
बहु से यह वचन सहन नहीं हुए। रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- “हे माता, तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी?”
माता बोली- “बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है। इतनी जन्दी सब बातें भुला दी?”
वह कहने लगी- “माता भूलती तो नहीं, न कुछ अपराध किया है, मैने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मै फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी।”
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