नई पुस्तकें >> सोमवार व्रत कथा सोमवार व्रत कथागोपाल शुक्ल
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सोमवार के व्रत में शिवजी और पार्वती जी का पूजन करना चाहिये।
वर के पिता ने इसी संबंध में मामा से बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। लडके को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। लडका जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- 'राजकुमारी, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूँ। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है।'
जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर लडका अपने मामा के साथ वाराणसी पहुँच गया। गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब उसकी आयु १६ वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा भांजे को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे।
मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वतीजी ने भगवान से कहा- 'प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।'
भगवान शिव ने पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा तो पार्वतीजी से बोले- 'पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे १६ वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।'
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