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आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843
आईएसबीएन :9781613012789

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है



 शिष्टाचार अपनाएँ-सम्मान पाएँ


एक प्राचीन कहावत है कि मनुष्य का परिचय उसके शिष्टाचार से मिल जाता है। उसका उठना, बैठना, चलना, फिरना, बातचीत करना, दूसरों के घर जाना, रास्ते में परिचितों से मिलना, ऐसे प्रत्येक कार्य एक अनुभवी को यह बतलाने के लिए पर्याप्त है कि वास्तव में व्यक्ति किस हद तक सामाजिक, शिष्ट एवं शालीन है।

सभ्यता और शिष्टाचार का पारस्परिक संबंध काफी घनिष्ट है। इतना कि एक के बिना दूसरे को प्राप्त कर सकने का ख्याल निरर्थक है। जो सभ्य होगा, वह अवश्य ही शिष्ट होगा और जो शिष्टाचार का पालन करता है, उसे सब कोई सभ्य बतलाएँगे। ऐसा व्यक्ति सदैव ऐसी बातों से बचकर रहता है, जिससे किसी के मन को कष्ट पहुँचे या किसी प्रकार के अपमान का बोध हो। ऐसे व्यक्ति अपने विचारों को नम्रतापूर्वक प्रकट करते हैं और दूसरों के कथन को भी आदर के साथ सुनते हैं। ऐसा व्यक्ति आत्मप्रशंसा के दुर्गुण से दूर रहता है। वह अच्छी तरह जानता है कि अपने मुख से अपनी तारीफ करना ओछे व्यक्तियों का लक्षण है। सभ्य और शिष्ट व्यक्ति को तो अपना व्यवहार और बोलचाल ही ऐसा रखना चाहिए कि उसके संपर्क में आने वाले स्वयं उसकी प्रशंसा करें। प्रशंसा सुनने की लालसा व्यक्तित्व निर्माण में घातक है। शिष्टाचार में ऐसी शक्ति है कि मनुष्य किसी को बिना कुछ दिए-लिए अपने और परायों का श्रद्धाभाजन और आदर का पात्र बन जाता है, पर जिनमें शिष्टाचार का अभाव है, जो चाहे जिसके साथ अशिष्टता का व्यवहार कर बैठते हैं, ऐसे लोगों के घर के आदमी भी उनके अनुकूल नहीं होते।

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