आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
|
0 |
मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
सद्व्यवहार, सदाचार आदि शिष्टाचार के ही अंग हैं। शिष्टाचारी मन, वचन, कर्म से किसी को हानि नहीं पहुँचाता, वह दुर्वचन कभी नहीं बोलता, न मन से किसी का बुरा चाहता है। जिससे किसी का दिल दुखे, ऐसा कार्य भी नहीं करता। विनय और मधुरतायुक्त व्यवहार ही उसके जीवन का अंग होता है। किसी प्रकार के अभिमान की शिष्टाचार में गुंजायश नहीं रहती। नम्रता, विनयशीलता आदि सद्गुण शिष्टाचार के आधार हैं। इतना ही नहीं शिष्टाचार की संपदा, समृद्धि बढ़ने के साथ ही उसकी निरभिमानता, नम्रता, विनयशीलता भी बढ़ती जाती है। जिस तरह फलों के बोझ से वृक्ष नीचे झुक जाता है, उसी तरह ऐसे व्यक्तियों की लौकिक संपदाएँ, ऐश्वर्य के बढ़ने पर भी नम्रता, विनयशीलता बढ़ जाती है।
शिष्टाचार एक ऐसा सद्गुण है जिसे अभ्यास और आचरण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए किन्हीं विशेष परिस्थितियों या उच्च खानदान की आवश्यकता नहीं। किसी भी स्थिति का व्यक्ति प्रयत्नपूर्वक शिष्टाचार का अभ्यास जीवन में डाल सकता है। इसके लिए संवेदनशील हृदय की कोमलता आवश्यक है। ऐसे व्यक्ति का अपने व्यवहार और जीवन क्रम में छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान रहता है, जिससे दूसरों को कोई दुःख न हो। शिष्टाचार में दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक है।
|