आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
छोटी-छोटी बातों में जो अपव्यय होता है, उस पर भी ध्यान रखना आवश्यक है। हम पाँच अथवा दस रुपए का कोई महत्त्व ही नहीं समझते। वास्तव में वे ही द्वार हैं, जिनसे होकर अपव्यय की आदत हमारे जीवन में प्रवेश करती है। युवको! प्रमाद के वशीभूत मत हो जाओ। जहाज के तल का एक छोटा छिद्र भी उसे डुबा देने के लिए पर्याप्त है। जीवन में अपव्ययता की भावना ही चाहे वह छोटी हो या बड़ी मनुष्य को पथभ्रष्ट करने के लिए पर्याप्त है। दो मित्र एक साथ खेले, पढ़े, बड़े हुए। एक धनी परिवार का था और उसे खरच करने की खुली छूट मिली थी। दूसरा निर्धन संस्कारवान घर का था व सदैव सीमित खरच करता था। धनी मित्र जब तक साथ रहा उसे अपनी फिजूलखरची में साथ रहने को आमंत्रित करता रहा, पर उसने उसकी यही बात नहीं मानी, शेष बातों पर सदैव परामर्श लेता भी रहा और उसे सुझाव देता भी कि अक्षय संपदा होते हुए भी आपको अनावश्यक खरच नहीं करना चाहिए।
कालांतर में निर्धन एक विद्यालय का प्रधानाध्यापक बना और धनी कारोबार में धन लगाकर चौपट कर चुका था। दोनों की मुलाकात एक दवाखाने में हुई। दुर्व्यसनों के कारण धनी मित्र का जिगर खराब हो गया था। दोनों ने एक-दूसरे की कथा सुनी। धनी मित्र ने आँखों में आँसू भरकर कहा- ''मित्र! मैंने आपका कहा माना होता, तो आज मेरी यह स्थिति न होती।'' दूसरे ने सहानुभूति दर्शायी और यथासंभव आर्थिक सहयोग देकर उसे नए सिरे से जीवन जीने योग्य बना दिया।
कंजूसी और मितव्ययता में वही अंतर है, जो असत्य और सत्य में, रात और दिन में। एक कंजूस व्यक्ति धन के लिए अपने जीवन की आवश्यकताओं का घोर दमन करता है। उसकी चमड़ी भले ही चली जाए परंतु वह दमड़ी नहीं खरच कर सकता। धन का उपयोग ही यह है कि उसके द्वारा जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हो और साधारण जीवन में मनुष्य प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ एक सामाजिक प्राणी के रूप में रह सके, लेकिन एक कंजूस धन को संचित करना ही उसका उपयोग समझता है। सामाजिक कार्यों के लिए एक मितव्ययी व्यक्ति मुक्त हस्त होकर दान देता है।
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