लोगों की राय

नई पुस्तकें >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841
आईएसबीएन :9781613015599

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


कलिम्पोंग में रहते हुए ''विद्यासागर रचनावली'' का छपा हुआ पहला खंड पाकर उन्होंने प्रकाशक को लिखा - ''हम उनके प्रति अपनी श्रद्धा के जरिए ही उन जैसे भारतीय के गौरव के भागीदार होने की कामना कर सकते हैं। अगर ऐसा न कर सके तो यह हमारे पतन की बात होगी।'' उनके कलिम्पोंग रहते समय बंगीय साहित्य परिषद की ओर से बंकिमचंद्र की सौवीं जयंती मनाई गई। कवि ने उस मौके पर एक कविता लिखकर भेजी थी, जिसकी पहली पंक्ति थी-'रात का अंधेरा होगा दूर, जब यात्री के हाथों में होगी मशाल।'

18 नवम्बर 1938 को कमाल अतातुर्क की मृत्यु की खबर पाकर शांतिनिकेतन में छुट्टी कर दी गई। रवीन्द्रनाथ ने अतातुर्क के बारे में एक भाषण दिया, जिसमें कहा, ''उन्होंने तुर्की को राजनीतिक आजादी दी थी, मगर यह कोई खास बात नहीं है। खास बात यह है कि उन्होंने तुर्की को अपनी आत्मा में पैठी गरीबी से आजादी दिलाई थी। मुस्लिम धर्म की कट्टरता के तूफान का मुकाबला करते हुए उन्होंने धार्मिक पाखंड को मानने से इनकार किया था। सिर्फ तुर्की को आजाद करने के लिए नहीं बल्कि उसकी जड़ता से बाहर निकालने के कारण ही आज पूरे एशियावासी उनके न रहने पर दु:खी हैं।''

रवीन्द्रनाथ का लेखन लगातार चल रहा था। साथ ही नाटकों की तैयारी भी। एक बार केरल के प्रसिद्ध कवि बल्लतौल भी शांतिनिकेतन आए। उनके साथ उनकी नृत्यमंडली भी थी। कवि ने उनका नृत्य देखा। कुछ दिनों के बाद कवि पुरी घूमने गए। वहां उन्होंने कई कविताएं लिखीं। वहां से लौटने के बाद मंग्पू गए, मैत्रेयी देवी के यहां। वहां 17 मई 1939 से 17 जून 1939 तक रहकर कलकत्ता लौटे। सुभाषचंद्र बोस के कहने पर उन्होंने 9 अगस्त को ''महाजाति सदन'' की नींव रखी। ''महाजाति सदन'' नाम भी रवीन्द्रनाथ का ही रखा हुआ है।

रवीन्द्रनाथ मैत्रेयी देवी के मेहमान बनकर एक बार फिर मंग्पू गए। वे वहां दो महीने तक रहे। इस वक्त यूरोप में महायुद्ध शुरू हो गया था। कवि ने दु:खी होकर लिखा, ''हमारे देखते-देखते यह दुनिया कितनी बिगड़ती जा रही है। पश्चिमी सभ्यता पर हमें बेहद भरोसा था। यह बात मैं भूल ही गया था कि अब सभ्यता का मतलब सुविधाओं के भोग की कला हो गई है। अब इस भोग-विलास पर किसी को भी शर्म महसूस नहीं होती।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book