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रवि कहानी
रवि कहानी
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2015 |
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9841
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आईएसबीएन :9781613015599 |
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
उसके बाद वे तेहरान से मोटर के जरिए इराक गए रास्ते में अखामनीय दारायूस की बेहिस्तान शिलालिपि देखी। वहां से बगदाद पहुंचे। वहां बादशाह फैजल से भेंट हुई। बगदाद में भी उनका सम्मान हुआ। उसके बाद वे वहां के रेगिस्तान में बंजारों के तंबुओं में भी गए। बंजारों ने रवीन्द्रनाथ को दावत खिलाई, उन्हें अपना युद्ध नृत्य दिखाया। रवीन्द्रनाथ उनके आवभगत से बहुत खुश हुए। उन्हें काफी पहले लिखी कविता की पंक्ति याद आई-'काश अगर मैं अरब का बंजारा होता।' बगदाद से वे हवाई जहाज से कलकत्ता लौटे।
लौटते ही उन्हें एक बड़ा झटका लगा। रवीन्द्रनाथ के एकमात्र नाती, उनकी सबसे छोटी बेटी मीरा देवी का बेटा, नीतेन्द्रनाथ की जर्मनी में असमय मृत्यु हो गई थी। रवीन्द्रनाथ शोक में डूब गए।
कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हीं दिनों उन्हें रामतनु लाहिड़ी प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया। कवि ने विश्वविद्यालय में कमला व्याख्यान दिया। शांतिनिकेतन में लौटकर वे गद्यछंद में कविता लिखने लगे। उनकी कविताओं की किताब ''पुनश्च'' नाम से छपी। उसी समय शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के 57 वें जन्मदिन की सभा का आयोजन हुआ।
रवीन्द्रनाथ ने इस अवसर पर अपनी ''कालेर यात्रा'' (समय का सफर) नामक किताब शरतचंद्र को भेंट की। उन्होंने लिखा-''समय की रथयात्रा की बाधा दूर करने का महामंत्र तुम्हारी प्रबल लेखनी के जरिए सफल हो। इस आशीर्वाद के साथ तुम्हारी लम्बी उम्र की कामना करता हूं।''
उन्हीं दिनों पुणे के यरवदा जेल में कैद गांधी जी अनशन कर रहे थे। अंग्रेज सरकार ने हिन्दुओं और मुसलमानों को दो अलग मतदाता सूची में बांट दिया था। अब सवर्ण और जनजातियों को भी अलग कर दिया। गांधी जी ने जेल से इस तरह के विभाजन का विरोध किया। उसी के विरोध में वे यह अनशन कर रहे थे। रवीन्द्रनाथ यह खबर पाकर 26 सितम्बर 1932 को पुणे रवाना हुए।
उसी दिन खबर आई कि ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी का प्रस्ताव मान लिया है। गांधी जी ने अनशन खत्म कर दिया। इस मौके पर रवीन्द्रनाथ जेल में मौजूद थे। उन्होंने गांधी जी को नींबू पानी पिलाकर अनशन तुड़वाया। गांधी जी के कहने पर उन्होंने उनका प्रिय गाना ''जीवन जब जाता है सूख'' गाकर भी सुनाया। कुछ दिन बाद ही 2 अक्टूबर को गांधी जी का जन्मदिन पड़ा।
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