नई पुस्तकें >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
देश के राजनीतिक हालात अच्छे नहीं थे। बंगाल आर्डिनेन्स कानून पास करके काफी नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। बेलगांव में कांग्रेस अधिवेशन के सभापति महात्मा गांधी थे। उस सभा में असहयोग की नीति को फिलहाल अमल में न लाने का फैसला हुआ। लेकिन चरखा कातने और खद्धर के प्रचार की नीति पर दोनों में अकेले काफी देर तक बातें हुईं। मगर दोनों ही एक दूसरे को अपनी बात नहीं समझा पाए।
16 जून 1925 को देशबंधु चितरंजन दास का दार्जिलिंग में देहांत हो गया। रवीन्द्रनाथ ने अपनी एक कविता के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि जताई -''जिस अमर प्राण को लेकर आए थे तुम अपने साथ, मर कर तुमने उसी को दे दिया दान।'' उस समय सारे देश में चरखे की लहर फैली हुई थी। रवीन्द्रनाथ इसके खिलाफ थे, उन्होंने अपने एक लेख में लिखा - ''चरखे के साथ स्वराज को जोड़कर इस देश की आम जनता को स्वराज के बारे में उलझाने की कोशिश की जा रही है।''
चरखे के बारे में रवीन्द्रनाथ की राय से काफी लोग सहमत नहीं थे। मगर कवि को अपनी बात कहने में कोई दुविधा नहीं थी। उन्होंने ''स्वराज साधन'' नामक लेख में लिखा - ''बड़ी आसानी से और जल्दी ही हमें स्वराज मिल जाएगा, यह बात कुछ दिनों से जनता को भुलावे में डाले हुए है। लम्बे समय से हम लोगों की धारणा थी कि स्वराज पाना बहुत कठिन है। ऐसे समय जैसे ही हमारे कानों में आसानी से और जल्दी ही स्वराज पाने की बात पहुंची, तब इस बारे में सोचने-विचारने की लोगों को जरूरत ही महसूस नहीं हुई। किसी संन्यासी द्वारा तांबे के पैसे को मोहर में बदलने की बात पर जो लोग यकीन कर लेते हैं, वे समझ की कमी के कारण ऐसा करते हैं; ऐसी बात नहीं है, बल्कि लालच के कारण कुछ सोचने की इच्छा न होने से वे सब इसी तरह खुश हो जाते हैं।''
सन् 1925 में इटली से, भारत के बारे में जानकारी रखने वाले दो विद्वान, तुच्ची और फर्मी भी शांतिनिकेतन में पढ़ाने के लिए आए। वे अपने साथ मुसोलिनी से भेंट में प्राप्त काफी किताबें भी लाए थे। उन्हीं दिनों भारतीय दर्शन कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ। रवीन्द्रनाथ को उसका सभापति बनाया गया। रवीन्द्रनाथ ने अपने भाषण में गरीब उपेक्षित जनता के धर्म पालन के धार्मिक और दार्शनिक पहलुओं के बारे में बताया।
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