नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मैं तो एक भंवरा हूँ जो पुष्प के हृदय तक पहुँच ही जाता है
तेरा सर्वप्रथम पुष्प उपहार दिवस की इस सर्वप्रथम बेला में मुझे प्राप्त हो गया है। और इसी उपहार के साथ तेरे प्रकाश की एक धुंधली रश्मि-लय भी मेरे पास आ गई है।
मैं तो एक मधुप हूँ जो तेरे स्वर्णिम प्रातः के उर-अन्तर में बस चुका है।
देख! मेरे पंख उषा-पुष्प के लालिमामय पराग से रंजित हैं।
तेरे चैत मास में गीतों का जो मधुर प्रीति-भोज है–उसमें मुझे भी स्थान मिल गया, और परतन्त्रता की श्रृंखलाओं से छूट कर, मैं अब ऐसे ही स्वतन्त्र हो गया हूँ जैसे खेल ही खेल में प्रभात का ‘अरुणिम’, प्रातः की धुंधली कुहा से छुटकारा पा लेता है।
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