नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
जो याद रखना चाहिए वह याद नहीं रहता, जिसे भूलना चाहिए उसे नहीं भूल पाते
निशा पर्यन्त चलकर ही मैं जीवन के प्रीतिभोज तक आ सका हूँ, और अब प्रातः की स्वर्णिम रश्मियों का कटोरा अपने प्रकाश पुँज से खिलकर मेरा स्वागत करने के लिए प्रस्तुत है।
उसी उल्लास के आवेश में मैंने गाया, मुझे नहीं मालूम कि किसने मुझे वह प्रीतिभोज दिया था। मुझे तो बस इतनी सी स्मृति है कि उस देने वाले का नाम पूछना मैं भूल गया था। मध्यान्ह के होते-होते मेरे चरणों के नीचे धूल जलने लगी और सूर्य सिर के ऊपर आ गया, तब प्यास की तृष्णा से त्रसित होकर मैं एक कुएँ के समीप पहुँचा।–मेरे मुख में पानी उड़ेल दिया गया और मैंने पानी पिया।
वह रूबी का प्याला जो मुझे प्रिय था वही एक चुम्बन के सदृश्य मधुमय था। मुझे याद है...जिसने मुझे उस प्याले से पानी पिलाया...उसी का नाम तक पूछना मैं भूल गया था।
उसी दिन थकी हुई संध्या के समय, अपने घर जाने की कामना लेकर, जब मैं मार्ग खोजता फिर रहा था तभी मेरा मार्गदर्शक एक दीप लेकर मेरे समीप आया और मुझे मेरा भूला हुआ पथ दिखा दिया।
मुझे स्मरण है...मैंने उसका नाम पूछा था किन्तु उस महाशान्तिमय रूप में, मैं केवल उसके प्रकाश को ही देख पाया और यह अनुभव किया कि उसकी मुस्कान निशा के महा तिमिर में भी प्रदीप्त है।
* * *
|