नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मुझे नासमझ जान कर ही तू मुझ पर अपने प्रेम की बौछार करती है
संसार में अपने उपहारों से तूने बाढ़ लगा दी और मुझे अपना प्रेम दे ही दिया।
रात्रि अंधकार में निमग्न है, मेरा हृदय सुप्त है और मेरी समझ अन्जान है। मेरे अन्जानेपन में ही तू मुझ पर अपने प्रेम की बौछार कर रही है।
यद्यपि स्वप्नों के मादक गर्त में पड़कर अपने को भूल-सा गया हूँ किन्तु तिस पर भी तेरे प्रेम से प्राप्त आनन्दमय रोमांच को कैसे भूल सकता हूँ।
प्रेम के रूप में तूने मुझे संसार रूपी खजाने को दे डाला है। तूने यदि सब कुछ ही मुझे दे डाला है तो मैं क्या करूँ, किन्तु इन सबके बदले में तो केवल एक प्रेम-पुष्प ही दूँगा...तुझे, और वह भी उस समय जब उषा की बेला में मेरा हृदय अपनी सुप्तावस्था को त्यागकर अपनी आँखें खोल देगा।
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