नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
प्रेम एक है, रहस्य दो हैं–एक तुम्हारा और दूसरा मेरा
मैं जमुना के उस रेतीले तट को प्यार करता था जहाँ एकाकी तलैया में बत्तखें चीत्कार किया करती थीं और कछुए किनारों पर आकर सूर्यस्नान किया करते थे। वे स्थान मुझे प्रिय हैं जहाँ सन्ध्या में मछली पकड़ने वाली नावें लम्बी घास की सघन छाया में आकर विश्राम करती थीं।
तुम भी तो नदिया के उस तट को प्यार करते थे जो सघन वृक्षों एवं फूल-पत्तियों से ढका होता था और जहाँ उन सबकी परछाईं बासों के वन की गोद में आकर बैठ जाती थी।
मुझे याद है तुम उस अलबेले तट को प्यार करते थे जहाँ स्त्रियाँ पानी भरने के लिए अपनी-अपनी ‘मटकियाँ’ साथ लेकर एक चक्कर-मार्ग से आती थीं।
वही प्रेम-नद हम दोनों के मध्य भी बहती थी और वही गीत गुनगुनाती थी–जो वह अपने कूलों के प्रति गुनगुनाती थी। मैंने भी उस गीत को सुनने का प्रयत्न किया था–उस समय–जब मैं अकेला तारों की छांह में जमुना की रेती पर पड़ा हुआ था। मुझे ज्ञात है–तुमने भी तो वही गीत उषा के सुनहरे प्रकाश में तट के ढाल पर बैठकर सुना था। तुमने उन शब्दों को नहीं सुना जो केवल मैंने सुने थे, पर हाँ! वह रहस्य जो उसने तुमसे कह दिया है–वही सदैव के लिए मेरा रहस्य भी बन गया है और कदाचित् जीवन-पर्यन्त उसे नहीं जान पाऊँगा।
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