नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मैं जानता हूँ किस विरह की वेदना से कमलनि पीली पड़ गई है
युगों बीत गये जब मधुमक्खियाँ ग्रीष्म के उद्यानों की ओर उड़ान भरा करती थीं, चन्द्रमा रात्रि के श्वेत-कमल को देखकर मुस्कराया करता था, आकाश की चंचल बिज्जु अपने मादक चुम्बन से बादलों को चूमती और भाग जाया करती थी–तब मैं भी एक कोने में छिपकर यह सब कुछ देखने का आदी-सा बन गया था। पर कोई मुझे नहीं देख सकता था क्योंकि मैं वृक्षों और बादलों में आत्मासात्-सा हो जाता था। मुझे याद है वह अपने हृदय को एक पुष्प की भाँति शान्त रखता था, एक पीले विरही चन्द्रमा के समान अपने स्वप्नों द्वारा उसे देखा करता और ग्रीष्म-ऋतु की गरम पवन के समान बिना मतलब इधर-उधर भटका करता था।
पर एक दिन चैत मास की सन्ध्या में जब चाँदनी बबूले की नाँई गोधूलि की गहनता से निकलकर चारों ओर छिटक गई थी उसी समय एक कोमलांगी बाला पौधों में पानी लगाते समय खोई-हुई-सी मालूम पड़ रही थी, दूसरी अपनी हिरणी को खिलाने में मस्त-सी थी और तीसरी अपने मोर को नचाने के प्रयत्न में अपने को भूल गयी थी। कवि ने यह सब कुछ देखा और वह गा-गा उठा-‘ए’! संसार के रहस्य को मैं खोलना चाहता हूँ। अतः तुम सुनो। क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह कमलनि क्यों पीली पड़ गई हैं। मैं बताऊँ–इसे चन्द्रमा के प्रेम की कामना है कमलनि सूर्य-देव के दर्शनार्थ अपने घूँघट-पट को फेंक देती है–क्यों? यदि इसी बात पर किंचित् मनन करोगे तो जान जाओगे।
बड़े-बड़े ज्ञानी नहीं मानते कि भंवरा अधखिली चमेली के कानों में क्यों कुछ गुँजार कर कह देता है और फिर चला जाता है? किन्तु कवि यह भी जानता है।
सूर्य तो बस लज्जित होकर छिप गया और चन्द्रमा वृक्षों के झुरमुट के पीछे निरुदेश्य भटकता रहा पर दक्षिण बयार ने धीरे से जाकर न जाने क्या उस कमलनि के कानों में कह दिया–नहीं! उसने कहा होगा कि कवि इतना भोला नहीं जितना कि वह जान पड़ता है। तब क्या था। युवक और युवतियाँ तालियाँ बजाने लगे और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे–‘अब क्या है। संसार का रहस्य तो हमें ज्ञात हो गया।’ तत्पश्चात् उन्होंने एक दूसरे के नयनों में देखा और गाने लगे–‘अब यदि समस्त संसार का वायुमंडल भी हमारा रहस्य जान जाये तो भी कोई बात नहीं।’
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