नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
अतिथि ईश्वर का ही रूप है, अतः मेरे यहाँ अतिथि का स्वागत है
मेरे जीवन के अतिथियों! तुम ही उषा में और तुम ही निशा में मेरे पास आते हो।
बसन्त-पुष्पों ने मुझे उनका नाम बता दिया है जो प्रातः की उषा में मेरे गृह-द्वार में प्रवेश करते हैं।–और वर्षा की झड़ी में भी मुझे उनका नाम बता दिया है जो निशा में मेरे पास आते हैं।
मेरे कुछ अतिथि तो संगीत साज लेकर आये और कुछ दीपक लेकर आये। किन्तु मेरे अभ्यागतों के मुझसे बिदा लेकर चले जाने पर, मुझे अपने घर के फर्श पर ईश्वरीय-पदचिह्न दिखाई पड़ने लगे।
अब–जब कि मेरी तीर्थ-यात्रा समाप्त होने पर है–मेरी इच्छा है–पूजा के संध्या-पुष्पों को तुम सबके लिए अपना अभिवादन दे दूँ।
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