नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
बचपन के गीतों ने मुझे इस लोक में जिलाया और वही परलोक में भी जिलायेंगे।
अपने हृदय में बचपनी गीतों के जागने पर मैंने सोचा यह तो वही गीत है जो प्रातः-पुष्पों के साथ खिला करते थे।
जब उन्होंने अपने पंखों को हिलाया और अराजकतामय सूनेपन में उड़ने को तत्पर होने लगे तो मुझे ऐसा जान पड़ा मानो कि उनमें ग्रीष्म की प्रेरणा प्रकम्पित होकर आ गई है– और वह शक्ति आ गई है जो एकाएक गरजकर किसी बड़ी हँसी में उतर आती है।
मैंने अनुभव किया मेरे बचपनी गीतों में उन तूफानों की वह पागल पुकार निहित है जो अपने मार्ग को सूर्यास्त से आतंकित भूमि के क्षितिज में खो देती है।
किन्तु अब सन्ध्या के धूमिल प्रकाश में मुझे तट की नीली रेखा दिखाई पड़ रही है, और साथ ही यह आभास भी हो रहा है कि मेरे गीतों ने ही मेरे लिए ऐसी नौका का काम किया है जिसने संसार-सागर के उग्रवक्षःस्थल से निकल कर मुझे आशा के तटरूपी बन्दगाह पर ला खड़ा किया है।
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