नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
यदि कोई मुर्झा कर धूलि में गिर जाये तो इसमें दुःख की बात क्या है
मेरे गीत उन बसन्त-पुष्पों के समान हैं जिन्हें तुम अपने उद्यानों में प्रफुल्लन के लिए भेजते हो, किन्तु मैं तुम्हारे पास इस रूप में उन्हें लाता हूँ मानो कि वे सब पुष्प मेरे ही हैं।
इन्हें देखकर पहले तो तुम मुस्कुराते हो, फिर स्वीकार कर लेते हो, किन्तु मेरे गर्वोल्लास पर तुम हँस क्यों पड़ते हो?
यदि मेरे गीत-पुष्प दुर्बल होने के कारण मुर्झा कर धूलि में गिर गए हैं तो इस पर मुझे कोई दुःख नहीं।
मुझे सम्भवतः ज्ञात है कि तुम्हारे हाथों में रहकर अनुपस्थिति से कोई हानि नहीं क्योंकि समय के प्रवाह में जो क्षण खो जाते हैं वही सौन्दर्यपूर्ण और आकर्षक बनकर फिर से खिलते हैं और तुम्हारी माला में आकर सदैव के लिए नित्य बन जाते हैं।
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