नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
संसार दूसरों से जाने क्या-क्या कह देता है पर स्वयं से कुछ नहीं कहता
तुमने स्वयं को अपने ऐश्वर्य में खोकर छिपा लिया, मेरे राजा!
ध्यान रखो यदि ऐसा है, तो बालू के एक कण और ओस की एक बिन्दु में तुमसे भी अधिक गर्व स्थित है।
निस्संकोच होकर समग्र सृष्टि उन सब वस्तुओं को अपना कहती है जो भी तुम्हारी हैं किन्तु फिर भी कोई यह नहीं कहता कि उसका ऐसा कहना एक लज्जा की बात है।
तुम स्वयं शान्तिमय रूप में खड़े होकर हमारे लिए किसी स्थान का प्रबन्ध करते हो। यही कारण है कि प्रेम स्वयं अपने दीप को जलाकर तुम्हारी खोज करता है और बिना बुलाये ही तुम्हारी आराधना करने के लिए आ जाता है।
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