नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
वह जो चाहे करे उसे सब कुछ कर लेने दो
उस समय वह केवल कुसुमित पत्तियों की एक कली थी जो ग्रीष्म में सागर के समीप वाले उद्यान में आ गई थी। वह तो केवल एक आवेषमय शब्द थी जो दक्षिणी वायु में प्रवाहित थी–उस समय वह केवल एक सुस्त-सी नोंची हुई-सी गीत की एक टुकड़ी के समान थी। अतः इतनी छोटी वस्तु के ‘अन्तर में’ उसी को पाकर दिवस पूर्ण हो गया।
उस प्रेम को प्रफुल्लित हो लेने दो जो ग्रीष्म में सागर के समीपस्थित उद्यान में आवेगा। –और तभी मेरे आनन्द को भी जन्मित होने दो–उसे अपनी तालियाँ बजाने दो–उत्तेजनामय गीतों को गा-गा कर नाचने दो और साथ ही–उषा के नयनों को मृदु आश्चर्य से चकित होकर खोल देने दो।
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