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पंचतंत्र
पंचतंत्र
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2014 |
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9838
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आईएसबीएन :9781613012291 |
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भारतीय साहित्य की नीति और लोक कथाओं का विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। इन लोकनीति कथाओं के स्रोत हैं, संस्कृत साहित्य की अमर कृतियां - पंचतंत्र एवं हितोपदेश।
तीन साधु
ज्ञान की खोज में एक बार तीन साधु हिमालय पर जा पहुंचे। वहां पहुंचकर तीनों साधुओं को बहुत भूख लगी। देखा तो उनके पास तो मात्र दो ही रोटियां थी। उन तीनों ने तय किया कि वो भूखे ही सो जाएंगे। ईश्वर जिसके सपने में आकर रोटी खाने का संकेत देंगे वो ही ये रोटियां खाएगा। ऐसा कहकर तीनों साधु सो गए।
आधी रात को तीनों साधु उठे और एक-दूसरे को अपना-अपना सपना सुनाने लगे। पहले साधु ने कहा- “मैं सपने में एक अनजानी जगह पहुंचा वहां बहुत शांति थी और वहां मुझे ईश्वर मिले। और उन्होंने मुझे कहा कि तुमने जीवन में सदा त्याग ही किया है। इसलिए ये रोटियां तुम्हें ही खानी चाहिए।”
दूसरे साधु ने कहा, “मैंने सपने में देखा कि भूतकाल में तपस्या करने के कारण मैं महात्मा बन गया हूं और मेरी मुलाकात ईश्वर से होती है और वे मुझे कहते हैं कि लंबे समय तक कठोर तप करने के कारण रोटियों पर सबसे पहला हक तुम्हारा है, तुम्हारे मित्रों का नहीं।”
अब तीसरे साधु की बारी थी उसने कहा, “मैंने सपने में कुछ नहीं देखा। क्योंकि मैंने वो रोटियां खा ली हैं। यह सुनकर दोनों साधु क्रोधित हो गए।”
उन्होंने तीसरे साधु से पूछा, “यह निर्णय लेने से पहले तुमने हमें क्यों नहीं उठाया? तब तीसरे साधु ने कहा कैसे उठाता? तुम दोनों तो ईश्वर से बातें कर रहे थे। लेकिन ईश्वर ने मुझे उठाया और भूखे मरने से बचा लिया।”
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