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पंचतंत्र

विष्णु शर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9838
आईएसबीएन :9781613012291

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भारतीय साहित्य की नीति और लोक कथाओं का विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। इन लोकनीति कथाओं के स्रोत हैं, संस्कृत साहित्य की अमर कृतियां - पंचतंत्र एवं हितोपदेश।

कामचोर बन्दर

वन में एक बन्दर था जो जानवरों में सबसे चालाक था। एक दिन हाथी और भालू एक साथ बैठे थे। वे सभी परेशान थे। उनकी परेशानी यह थी कि जब दूरदराज से उनके नाम की कोई चिट्ठी आती थी तो उसे लाने में जिराफ काफी समय लगाता था। वगैर पैसे दिए कोई भी चिट्ठी उन्हें नहीं मिलती थी।

एक दिन सबने बैठकर एकमत से सहमत होकर यह निश्चय किया कि वन का डाकिया बन्दर को बनाया जाए क्योकि वह चुस्त और चालाक भी है। उसी दिन से बन्दर को वन का डाकिया बना दिया गया। बन्दर समय पर सभी को डाक लाकर दे देता था। बन्दर ने देखा कि उसे सभी चाहते हैं तो उसने पैसों की जगह हर एक से केला लेना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे बन्दर कामचोर होता गया और उसकी कामचोरी बढ़ती गई। फ़िर धीरे-धीरे उसने सभी से पैसे लेना शुरू कर दिया।

जब सभी ने देखा कि बन्दर कामचोर हो गया है और सभी से पैसे लेने लगा है तो सबने बैठकर वन में एक बैठक आयोजित की और सर्वसम्मति से निर्णय पारित किया कि अब बन्दर को हटा दिया जाए और भालू को डाकिया बना दिया जाय।

परन्तु इसी बीच हाथी बीच में कूद पड़ा और बोला अब इस जंगल में कोई डाकिया नहीं बनेगा। तो सभी जानवरों ने उससे कहा कि नया डाकिया नहीं बनेगा तो हम लोगो को चिट्ठी कैसे मिलेगी। हाथी ने कहा - अब शहर में अपने नाते रिश्तेदारों दोस्तों भाई बहिनों और माता पिता को यह संदेश भिजवा दो कि वे अब चिट्ठी न लिखे तो आप सभी आगे देखेंगे कि बन्दर घर में बैठा रहेगा।

भालू ने कहा भैय्या आपका आइडिया बहुत अच्छा है मगर अगर शहर में किसी को कुछ हो गया तो ख़बर कैसे पता लगेगी। सभी जानवर एक साथ बोले हाँ हाँ बताओ कैसे पता चलेगा ?

हाथी ने कहा - सब शांत होकर मेरी बात सुनो हम सब मिलकर एक साथ वन में एक बूथ खोलेंगे और जब नंबर लगायेंगे तो बात हो जाया करेगी। सभी जानवर अपने-अपने घरों में टेलीफोन लगा लें जिससे उन्हें कभी डाकिये के भरोसे रहना नहीं पड़ेगा। यह सुनकर सभी जानवर बहुत खुश हो गए। यह सब बातें बन्दर सुन रहा था उसे अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने बहुत पश्चाताप किया और सभी जानवरों से माफ़ी मांगी।

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