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पंचतंत्र

विष्णु शर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9838
आईएसबीएन :9781613012291

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भारतीय साहित्य की नीति और लोक कथाओं का विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। इन लोकनीति कथाओं के स्रोत हैं, संस्कृत साहित्य की अमर कृतियां - पंचतंत्र एवं हितोपदेश।

मित्रता की परख

एक जंगल था। गाय, घोड़ा, गधा और बकरी वहाँ चरने आते थे। उन चारों में मित्रता हो गई। वे चरते-चरते आपस में कहानियाँ कहा करते थे। पेड़ के नीचे एक खरगोश का घर था। एक दिन उसने उन चारों की मित्रता देखी।

खरगोश पास जाकर कहने लगा, "तुम लोग मुझे भी मित्र बना लो।"

उन्होंने कहा, "अच्छा।"

तब खरगोश बहुत प्रसन्न हुआ। खरगोश हर रोज़ उनके पास आकर बैठ जाता। कहानियाँ सुनकर वह भी मन बहलाया करता था।

एक दिन खरगोश उनके पास बैठा कहानियाँ सुन रहा था। अचानक शिकारी कुत्तों की आवाज़ सुनाई दी। खरगोश ने गाय से कहा, "तुम मुझे पीठ पर बिठा लो। जब शिकारी कुत्ते आएँ तो उन्हें सींगों से मारकर भगा देना।"

गाय ने कहा,"मेरा तो अब घर जाने का समय हो गया है।"

तब खरगोश घोड़े के पास गया।

कहने लगा, "बड़े भाई ! तुम मुझे पीठ पर बिठा लो और शिकारी कुत्तोँ से बचाओ। तुम तो एक दुलत्ती मारोगे तो कुत्ते भाग जाएँगे।"

घोड़े ने कहा, "मुझे बैठना नहीं आता। मैं तो खड़े-खड़े ही सोता हूँ। मेरी पीठ पर कैसे चढ़ोगे ? मेरे पाँव भी दुख रहे हैं। इन पर नई नाल चढ़ी हैं। मैं दुलत्ती कैसे मारूँगा ? तुम कोई और उपाय करो।”

तब खरगोश ने गधे के पास जाकर कहा, "मित्र गधे ! तुम मुझे शिकारी कुत्तों से बचा लो। मुझे पीठ पर बिठा लो। जब कुत्ते आएँ तो दुलत्ती झाड़कर उन्हें भगा देना।"

गधे ने कहा, "मैं घर जा रहा हूँ। समय हो गया है। अगर मैं समय पर न लौटा, तो कुम्हार डंडे मार-मार कर मेरा कचूमर निकाल देगा।"

तब खरगोश बकरी की तरफ़ चला।

बकरी ने दूर से ही कहा, "छोटे भैया ! इधर मत आना। मुझे शिकारी कुत्तों से बहुत डर लगता है। कहीं तुम्हारे साथ मैं भी न मारी जाऊँ।"

इतने में कुत्ते पास आ गए। खरगोश सिर पर पाँव रखकर भागा। कुत्ते इतनी तेज़ दौड़ न सके। खरगोश झाड़ी में जाकर छिप गया।

वह मन में कहने लगा, "हमेशा अपने पर ही भरोसा करना चाहिए।"

 

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