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मुल्ला नसीरुद्दीन के कारनामे

विवेक सिंह

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9837
आईएसबीएन :9781613012734

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हास्य विनोद तथा मनोरंजन से भरपूर मुल्ला नसीरुद्दीन के रोचक कारनामे

1. आश्चर्यजनक


'लो भई महमूद, इतनी दौड़-धूप के बाद रात-बसेरे लायक आखिर एक ठिकाना नजर आ ही गया।' रात के समय घनघोर जंगल में भटकते हुए एक खण्डहर दिख जाने पर मुल्ला ने अपने साथी से कहा।

'चलो पास चलकर देखें।‘ साथी ने कहा।

दोनों खण्डहर के पास पहुँचे। खण्डहर बड़ा भयावह था। लगता था मानों वहाँ वर्षों से कोई आदमी न आया हो।

'भई महमूद, यहाँ तो ठहरने की हिम्मत नहीं हो रही है।' मुल्ला ने अपने साथी से कहा।

साथी ने अभी कोई जवाब नहीं दिया था कि खण्डहर में से कोई व्यक्ति बोला- 'आइए भाई साहब, क्या बात है।'

वहाँ आदमी देखकर मुल्ला की जान में जान आई। अपने साथी का हाथ पकड़कर वह खण्डहर में चला गया।

खण्डहर जितना बाहर से भयानक था, अन्दर से उतना ही भव्य! चार-पाँच विशाल कमरे अच्छी हालत में थे और उनमें सुन्दर सजावट भी हो रही थी।

मुल्ला ने वहाँ रहने वाले व्यक्ति से पूछा- 'भाई, तुम कौन हो? यहाँ जंगल में महल क्यों बना रखा है?'

'यह एक जमींदार का महल है और मैं यहाँ चौकीदार हूँ।' उस व्यक्ति ने मुल्ला को बताया।

'हम यहाँ रात बिताना चाहते हैं। इस भवन के बाहरी रूप को देखकर तो हम डर गए थे। ऐसा लगता था मानों यहाँ कोई विशेष घटना घट गई हो।'  

'नहीं, इधर पाँच साल से तो सब सामान्य चल रहा है, हों पाँच वर्ष पहले यहाँ एक विचित्र घटना अवश्य घटी थी।' चौकीदार ने कहा।

'वह क्या!' व्यग्रता के साथ मुल्ला ने पूछा।

एक व्यक्ति यहाँ रात बिताने को ठहरा था और आश्चर्य यह कि वह सवेरे सकुशल अपने गन्तव्य को रवाना हुआ।

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