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मूछोंवाली

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9835
आईएसबीएन :9781613016039

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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।

70

परीक्षा


वे दोनों पढ़े-लिखे और आधुनिक विचारों के थे। दोनों में प्रेम भी था, परन्तु शादी करने से पूर्व वे कुछ दिन साथ रहकर एक दूसरे को समझ लेना चाहते थे।

उस दिन वह रात देर से आई। अन्दर प्रवेश करते ही अधिकारपूर्ण और शंकालु स्वर उभरा...’कहां से आ रही हो इतनी रात...?’

‘कई गुण्डों ने मिलकर मेरा रेप कर दिया...’ कहते हुए उसकी नजर झुकी नहीं।

‘रेप कर दिया... क्या कह रही हो’ उसका चेहरा तमतमा गया।

‘मैं सच कह रही हूं।’

‘फिर क्या करने आई हो यहां डूब मरो किसी कुएं तालब में चरित्रहीन...’

‘तुमने मुझे चरित्रहीन कहा...’ क्रोधसे उसकी आंखें भी लाल हो गई थी- ‘कई गुण्डे मिलकर एक लड़की को आहत कर देते हैं तो तुम उसे चरित्रहीन समझते हो... मैं उनके पास जानबूझ कर तो नहीं गई।

पिछले सप्ताह कुछ बदमाशों ने मिलकर तुम्हारी पिटाई की और सारा वेतन छीन लिया था। तब मैंने तो तुम्हें चरित्रहीन नहीं कहा बल्कि तुम्हारे साथ सहानुभूति प्रकट की थी। तुम तो मर्द हो। उनका मुकाबला करने की बजाए मुझी से उलझ रहे हो...।’

‘चाहे जो हो... मैं तुम्हारे साथ शादी नहीं कर सकता’ पुरुष ने अपना निश्चय सुना दिया।

‘हो चुकी तुम्हारी परीक्षा... मुझे भी दकियानूसी और कायर आदमी पंसद नहीं। मैं जा रही हूं...।’

वह आश्चर्यचकित-सा, अपनी सुंदर प्रेमिका को जाते देखता रहा।

 

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