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मूछोंवाली
मूछोंवाली
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9835
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आईएसबीएन :9781613016039 |
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
59
किन्नर
फौजी दादा घर के बरामदे में अपनी अधटूटी चारपाई पर बैठे थे कि बाहर से बधाई देने के लिए किन्नरों की टोली आ गयी। वहीं बैठकर तालियां बजा-बजाकर नाचने व बधाई देने लगी-’फौजी दादा इस घर में तीसरा पोता हुआ है... किसी की नजर न लगे, इसमें तो लड़के ही लड़के बरसते हैं...’ किन्नरों की मुखिया दुआएं देती हुई फौजी दादा के पास आ गयी।
फौजी दादा ने उसे अपने पास बैठा लिया-’देख कमली तू बरसों से इस घर में बधाई देने आ रही है। पहले लड़के पर जब तूं बधाई देने आयी थी तब मैंने बड़े चाव से इस मकान को बनाया था। सब कुछ मौज-बहार थी। तभी से नजर लग गयी। सब सोचते हैं चार लड़के और तीन पोते हो गए... परन्तु अंदर की कोई नहीं जानता। चारों लड़कों ने मकान बांट लिया खेतों के टुकड़े-टुकड़े करके बर्बाद कर दिया। अब तीनों पोतों को भी हिस्सा चाहिए। मेरी चारपाई तो सरकते-सरकते बरामदे में आ गयी।
काश घर में लड़की जन्मी होती हो हाथ पीले करके विदा कर देता पर इन मुसटण्डों को कहां निकालूं। अब तू बता बधाई तो देने आ गयी परन्तु मैं तूझे बख्शीश कहां से दूं...।’
कमली फौजी दादा का दर्द समझ गयी। ‘सचमुच लड़के वाले घरों का यही दर्द है... अब तो हमें लड़कियों के जन्म पर बधाई देने जाना पड़ेगा...।’
हाथ के संकेत से उसने अपनी टोली को एकत्रित किया तथा बिना कुछ लिए बाहर निकल गयी।
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