नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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असल कमाई
लड़के से न पूछकर उन्होंने पुरोहित जी से ही प्रश्न किया-’क्यों पुरोहित जी, लड़के की कमाई कितनी होगी भगवान की दया से...’
पिता ने जवाब दिया-
‘जनाब कमाई की क्या पूछते हो। कहने को तो आठ हजार रुपये तनख्वाह है, पर ऊपर से बीस-तीस हजार बन जाते हैं।’
‘हां...हां...चुंगी की कमाई का क्या ठिकाना जजमान।’ पुरोहित ने भी समर्थन कर दिया।
‘पुरोहित जी, सेठ जी का क्या काम-धंधा है’ लड़के के पिता ने चश्मे को ऊपर खींचा।
‘अजी म्हारा क्या... एक छोटी-सी ट्रांसपोर्ट है भगवान की दया से...’
‘पर काम तो सारा ब्लैक का चलै से’ पुरोहित ने इस बात का भी समर्थन किया तो दोनों सेठों ने एक दूसरे की हंसी को बढ़ा दिया।
‘तो ठीक है जजमान, आपकी ट्रांसपोर्ट और इनका लड़का चुंगी पर... भगवान आपकी नेक कमाई में बरकत दे... निकालूं विवाह का शुभ मुहर्त...?’
‘हां हां... क्यों नहीं...?’ एक बार फिर दोनों का ठहाका दीवारों को कंपाने लगा।
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