नई पुस्तकें >> मूछोंवाली मूछोंवालीमधुकांत
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‘मूंछोंवाली’ में वर्तमान से तीन दशक पूर्व तथा दो दशक बाद के 50 वर्ष के कालखण्ड में महिलाओं में होने वाले परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती हैं ये लघुकथाएं।
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लोक-लाज
‘सरोज! थोड़ा पानी तो दे।’ बीमार पति का कराहता स्वर उभरा।
‘अभी आई।’
कहकर सरोज कोने में रखी तिपाई की ओर बढ़ गई। गिलास में पानी डाल उसने पति की ओर बढ़ा दिया। हल्की निश्चिंतता और घबराहट उसके मन में घुली जा रही थी।
पचास वर्ष के इस बूढ़े को वैसे कभी भी, सरोज अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं कर पायी थी। लेकिन कर्जे के बोझ से पिसते अपने पिता तथा उनकी दयनीय स्थिति - उसने मौन स्वीकृति दे दी थी और भविष्य के सुनहरे स्वप्न फर्ज की आहुति में होम होकर रह गए थे।
सोचते-सोचते न जाने कब उसकी आंख लग गई।
‘मर गया।’
भोर होने पर एक पड़ोसिन ने आकर सरोज को झिंझोड़ा और फिर सुबकते हुए उसकी माँग पोंछ दी।
दूसरी ने आकर उसकी रेशमी साड़ी तार-तार कर दी तथा गहने उतार दिए।
फिर, एक वृद्धा ने उसकी गोरी-गोरी कलाइयों में फंसी उसकीचूडियां फोड़ डाली।
देखते ही देखते पूरे घर में कोहराम मच गया। लेकिन सरोज कीरूलाईनहीं फूट पा रही थी। वह सामान्य थी।
पति मर गया है। पर इस बेहया को देखो। आखिर लोकलाज भी कोई चीज है।
समीप बैठी औरतों की फुसफुसाहट उससे छिप न सकी।
और अन्त में समूह के बीच उसे रो रोकर बेहोश हो ही जाना पड़ा।
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