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आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :61
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9833
आईएसबीएन :9781613012833

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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।

गरीबों द्वारा अमीरी का आडम्बर

रोम के एक दार्शनिक के मन में भारत की महत्ता देखने की ललक उठी। समय और धन खर्च करके आए, घूमे और रहे। लौटे तो उदास थे। साथियों ने पूछा तो केवल इतना कहा, ''भारत में जहाँ गरीब अधिकांश रहते हैं, वहाँ भी अमीरों जैसा स्वाँग बनाया जाता है।'' ऐसा ही कथन एक जापानी शिष्ट मंडल का भी है। उन्होंने भ्रमण के बाद कहा था, यहाँ अमीरी का माहौल है, परंतु उसकी छाया में पिछड़े, गए-गुजरे लोग रहते हैं।

प्रश्न उठता है कि ऐसी विडम्बना क्यों कर बन पड़ी? अमीरों में जो दुर्गुण पाए जाते हैं, वे यहाँ जन-जन में विद्यमान हैं, किंतु प्रगतिशीलों में जो सद्गुण पाए जाने चाहिए, उनका बुरी तरह अभाव है। इस कमी के रहते गरीबी ही नहीं, अशिक्षा, गंदगी, कामचोरी जैसी अनेकों पिछड़ेपन की निशानियाँ बनी ही रहेंगी। वे किसी बाहरी संपत्ति के बलबूते दूर न हो सकेंगी। भूमि की अपनी उर्वरता न रहे, तो बीज बोने वाला, सिंचाई-रखवाली करने वाला भी उपयुक्त परिणाम प्राप्त न कर सकेगा।

मनुष्य की वास्तविक संपदा उसका निजी व्यक्तित्व है। वह जीवत स्तर का हो, तो उसमें वह खेत-उद्यानों की तरह अपने को निहाल करने वाली और दूसरों का मन हुलसाने वाली संपदाएँ प्रचुर मात्रा में उत्पन्न हो सकती हैं, पर चट्टान पर हरियाली कैसे उगे? व्यक्तित्व अनायास ही नहीं बन जाता। वह इर्द-गिर्द के वातावरण से अपने लिए प्राणवायु खींचता है। जहाँ विषाक्तता छाई हुई हो, वहाँ साँस लेना तक कठिन हो जाएगा। लंबे समय तक जीवित रहने की बात तो वहाँ बन ही कैसे पडेगी?

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