आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलेश्रीराम शर्मा आचार्य
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समय सदा एक जैसा नहीं रहता। वह बदलता एवं आगे बढ़ता जाता है, तो उसके अनुसार नए नियम-निर्धारण भी करने पड़ते हैं।
स्थिति को कैसे बदला जाए? इसके संबंध में तरह तरह के उत्पादनों, उपकरणों, निर्धारणों की बात सोची जाती है। वैज्ञानिक, मनीषी, सत्ताधारी, शक्तिशाली, अपने अपने ढंग से यह भी सोचते हैं कि प्रस्तुत अनर्थ को यदि सुसंरचना में बदला जा सके, तो इसकी तैयारी के लिए बड़े साधन, बडे-बड़े आधार खड़े किए जाने चाहिए। ऐसी योजनाएँ भी आए दिन सुनने को मिलती हैं और जताई-बताई भी जाती हैं कि अधिक साधन संपन्न संसार विनिर्मित करने के लिए, बड़े लोग कुछ बड़े कदम उठाने, बड़े विधान बनाने जा रहे हैं। इतने पर भी निराशा को हटाने में राई रत्ती भी सफलता मिलती दीख नहीं पड़ती, क्योंकि वस्तुतः मनःस्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है। यदि मानसिकता को आदर्शवादी उत्कृष्टता के साथ न जोड़ा जा सका, तो स्थिति सुधरेगी, सुलझेगी नहीं, वरन् विपत्तियाँ और भी नजदीक आती, और भी रौद्र रूप धारण करती चली जाएँगी। समस्याओं का समाधान भले ही आज हो या आज से हजार वर्ष बाद, पर उसका समाधान मात्र एक ही उपाय से संभव होगा, कि मनःस्थिति में संव्याप्त अवांछनीयता को पूरी तरह बुहार फेंका जाए और ऐसा कुछ शक्तिशाली चिंतन उभारा जाए जो प्रस्तुत उलटे प्रवाह को अपनी प्रचण्ड शक्ति के सहारे उलटकर सीधा कर सके।
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