लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)

कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832
आईएसबीएन :9781613016046

Like this Hindi book 0

ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है


लोभा और गीदड़

 

एक बार एक लोभा थी और वह गर्भवती थी। वह दौड़ी-दौड़ी गई और सड़क पर जाकर लेट गई। वहां सड़क पर एक चावलों की बोरियों से भरा हुआ ट्रक आया। लोभा के पास आकर ड्राइवर बोला- लोभा, हट ले नहीं तो मर जाएगी।

लोभा बोली- नहीं हटूंगी। पहले एक चावल की बोरी उदारकर दो।

ट्रक चालक ने एक बोरी उतार दी और ट्रक को लेकर चला गया। लोभा उस बोरी को उठा लाई और अपने घर में रख दी तथा फिर दौड़ी-दौड़ी गई और उसी सड़क पर लेट गई फिर गुड़ की बोरियों का ट्रक आया और लोभा के पास रुककर ड्राइवर कहने लगा कि लोभा हट ले, नहीं तो मारी जाएगी।

लोभा बोली- एक बोरी गुड़ की डाल दो।

उस ट्रक वाले ने एक बोरी गुड़ उतार दी। लोभा ने उस बोरी को उठाया और अपने घर ले गई। कुछ दिन बाद उस लोभा ने छः बच्चे दिए। जिनमें एक बच्चा भूरा था, एक काना तथा बाकी चार अन्य रंगों के थे।

लोभा सबसे ज्यादा प्रेम अपने भूरे बच्चे से करती थी। वह काने बच्चे को छोड़कर सभी पांचों बच्चों को अपना दूध पिलाया करती थी। इस प्रकार से वह छठा बच्चा गुड़ खाकर ही जिंदा रहता। लोभा जब भी बाहर जाती भूरा बच्चा अन्दर की कुंडी लगा लेता और जब लोभा बाहर से आती तो कहती- गुड़ से लिपूं, चावलों से लिपूं, खोलिए मेरे भूरे बच्चे। तो झट अन्दर से कुंडी खुल जाती। इस प्रकार दूध पिलाकर लोभा फिर बाहर चली जाती।

एक दिन की बात है जब लोभा अपने भूरे बच्चे से कह रही थी तो झाडि़यों में छुपे एक गीदड़ ने यह शब्द सुन लिया। वह लोभा तो दूध पिलाकर बाहर निकली थी कि वह गीदड़ आ धमका और बोला- गुड़ से लिपूं चावलों से लिपूं खोलिए मेरे भूरे बच्चे।

यह सुन शब्द जब भूरे बच्चे ने सुना तो सोचा कि आज तो जल्दी ही मां घर आ गई। उसने झट से कुंडी खोल दी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai