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कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9832
आईएसबीएन :9781613016046

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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है

इधर वे औरतें अपना गीत शुरू करने लगीं। जब चोरों ने दीवार को खोदना शुरू किया तो उन औरतों ने अपने गीत की शुरूआत की। पहली औरत गाने लगी-

खुदक-खुदक क्या खोदा...

यह सुनकर चोर चुपचाप बैठ गये। अब दूसरी की बारी थी। वह अपना गीत गाने लगी। और कहने लगी-

चुपक-चाला क्यों बैठा...

चोरों ने सोचा कि ये तो हमें देख रही हैं और वो चारों चोर चुपचाप वहां से चलने लगे। अब तीसरी की बारी थी। अब वह अपना गीत गाने लगी-

रूघक-रूघक कहां चला...

यह सुनकर चारों चोर वहां से भाग लिये। अब चौथी ने भी अपना गीत गा दिया-

पटक-पछाड़, पटक पछाड़...

इस प्रकार से उनके से चूहे से सीखे गये गीत ने उनके घर चोरी होने से बचा लिया।

 

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