ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
चुहिया फिर खील-बतासे खाती और मटकती हुई कहने लगी- आज थोड़ी ठंड ज्यादा थी सो मैं वहां पर अपने आपकी सिकाई करने के लिए घुसी थी। हाथ सेंक लेती मगर तुमने वहां से भी मुझे निकाल लिया। कैसी सहेली हो तुम। जो अपनी सहेली का इतना भी ख्याल नहीं रखती। मैं तुम्हें नहीं दूंगी खील-बतासे। तुम अभी की अभी यहां से चली जाओ।
चिड़िया कुछ ना बोली और चुपचाप अपने घर अपने घोंसले में चली गई। कुछ दिन बाद ही चिड़िया का मामा आया और बहुत सारे खील-बतासे और बहुत सी खाने चीजें लेकर आया। चिड़िया को बहुत खुशी हुई। तब तक चुहिया के खील-बतासे भी खत्म हो चुके थे। चिड़िया भी खील-बतासे लेकर अपने घोंसले से बाहर आकर एक टहनी पर बैठकर खाने लगी और लगी इतराने। खाते-खाते उनका कुछ भाग नीचे गिर गया तो चुहिया को पता चला कि आज उसका मामा आया हुआ है।
चुहिया दौड़ी-दौड़ी चिड़िया के पास गई और कहने लगी- चिड़िया बहन, सुना है आज तेरे मामा आये थे। क्या मुझे खील-बतासे नहीं खिलाओगी ?
चिड़िया यह सुनकर बोली- क्यों री चुहिया, जब तुम्हारे मामा आये थे तो क्या तुमने मुझे खिलाये थे जो आज मैं तुझे खिलाऊं।
बेचारी चुहिया कुछ ना बोल सकी। वह निरुत्तर हो गई। और पश्चाताप करने लगी। उसकी आँखों से अश्रुधार फूट पड़ी। बाद में वह बार-बार चिड़िया से क्षमा याचना करने लगी। चिड़िया बेचारी साफ हृदय की थी। उसने चुहिया को माफ कर दिया और बहुत सारे खील-बतासे दे दिए। दोनों फिर से सहेली बन गईं और खुशी-खुशी खील-बतासे खाने लगीं।
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