ई-पुस्तकें >> कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ) कुमुदिनी (हरयाणवी लोक कथाएँ)नवलपाल प्रभाकर
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ये बाल-कथाएँ जीव-जन्तुओं और बालकों के भविष्य को नजर में रखते हुए लिखी गई है
अब हजारी प्रसाद को जल्लादों के सुपुर्द कर दिया गया। जल्लाद उसे फांसी वाले कमरे में लेकर गये। अब चार जल्लादों को देखकर वह सोचने लगा- ये तो मुझे सचमुच ही मार देंगे। यदि ये मुझे छोड़ दें तो इसके बदले मैं इन्हें चार लाल भी दे सकता हूं। धन तो आने-जाने वाली चीज है। आज मेरे पास है कल किसी और के पास होगी, मगर जिन्दगी तो केवल एक बार ही मिलती है। यह सोचकर उसने जल्लादों को पास बुलाया और पूछा कि आप जल्लाद हैं इसलिए आप मेरे सवाल का जवाब दें। मुझे मारकर आपको क्या मिलेगा।
जल्लादों ने कहा- हमें कुछ नहीं मिलेगा, मगर ये राजाज्ञा है इसे तो मानना ही पडे़गा।
यदि तुम मुझे छोड़ तो मैं तुम्हें नौ-नौ करोड़ के चार लाल दे सकता हूं। जिन्हें तुम आपस में बांट लेना और इस जल्लाद वाले घृणित काम को छोड़कर कोई अच्छा सा काम करना।
एक जल्लाद ने पूछा- हमारा राजा यदि पूछेगा कि क्या हमने उस आदमी को मार दिया तो हम क्या जवाब देंगे?
तो राजा से कहना कि हमने उसे मारकर कुएं में डाल दिया है, और राजा की नौकरी छोड़कर आराम की जिन्दगी बसर करना - हजारी प्रसाद ने कहा।
जल्लादों ने उसकी बात मान ली और एक-एक लाल लेकर उसे छोड़ दिया। वह उसी रात को वहां से अर्थात चन्दनपुर गांव को छोड़कर उज्जैन नगर जाने के लिए रवाना हो लिया परन्तु उसके मन में बार-बार यही सवाल आ रहा था कि यदि पास में पैसा हो तो वह कहीं भी काम आ सकता है जैसे आज इस धन ने मेरी जान बचाई है और दूसरी बात यह कि औरत चाहे कैसी भी हो सर्वगुण सम्पन्न या सभी लक्षणों से युक्त, वह यदि अपने से दूर रखी जाए तो इन्हीं गुणों के आड में वह कुल्टा स्त्री बन जाती है और समय आने पर वह अपने पति तक को नहीं छोड़ती। वह नागिन बन जाती है और अपने सगे-संबंधियों या मां-बाप को भी डस लेती है। औरत तब तक ही औरत रहती है जब तक वह अपने पति के साथ रहती है। पति से दूर रहने पर वह चरित्रवान होने पर भी दुश्चरित्र या कुल्टा स्त्री बन जाती है।
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