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आचार्य श्रीराम शर्मा >> कामना और वासना की मर्यादा

कामना और वासना की मर्यादा

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9831
आईएसबीएन :9781613012727

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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।

विशुद्ध आत्मा से की गई सदिच्छाएँ बड़ी बलवती होती हैं। ऐसा व्यक्ति स्वयं तो स्वर्गीय सुख का अहर्निश आस्वादन करता ही है, साथ ही अनेक औरों को भी सन्मार्ग की प्रेरणा देकर उन्हें भी सदाचार में प्रवृत्त कर देता है। दूसरों की भलाई करने वालों को सदैव सर्वत्र सम्मान-सुख मिलेगा ही। औरों के दुःख में हाथ बँटाने वाले ही सच्चे मित्र प्राप्त करते हैं। परमार्थ ही जिनकी वृत्ति होती है, उन्हें औरों की आत्मीयता से वंचित रहते कभी किसी ने न देखा होगा। दक्षिण के महान संत तिरुवल्लुवर ने लिखा है- ''योग वही है जो सांसारिक इच्छाओं को वशवर्ती करे, औरों की हित कामना में रत हो।'

यह सच ही है कि मनुष्य इस धरती पर एक महान उद्देश्य लेकर अवतरित हुआ है। यह सुयोग उसे बार-बार नहीं मिलता। आज जो शारीरिक, मानसिक और भावनाओं की क्षमता हमें मिली है, कौन जाने अगले जन्मों में भी मिलेगी अथवा नहीं। फिर हमें सच्चे हृदय से आत्म-कल्याण की ही कामना करनी चाहिए। अपना जीवन लक्ष्य भी पूरा हो सकेगा तथा औरों के प्रति कर्त्तव्य पालन भी हो सकेगा।

हम स्वास्थ्य, सद् गृहस्थ, धन और यश की कामना करें पर परमार्थ को भी भुलाएँ नहीं। आत्म-तुष्टि का जहाँ ध्यान रहे, वहाँ यह भी न भूलें कि इस संसार में हजारों लाखों ऐसे भी हैं जो हमारी परिस्थितियों से कोसों पीछे पड़े अभाग्य का रोना रो रहे हैं। इनके भी हित एवं कल्याण की इच्छा करना हमारा परम धर्म है। इसके अभाव में तो वह परिस्थितियों भी देर तक न टिक सकेंगी, जो आज हमें मिली हैं। कोई धनी व्यक्ति यदि सारा धन समेटकर बैठ जाए आस-पास के लोग भूखे मरते रहें तो वह व्यक्ति अपनी सुरक्षा स्थिर रखे रहेगा, ऐसी आशा बहुत कम करनी चाहिए।

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। अपने परिवार, पड़ोस, गाँव, राष्ट्र की अनेक जिम्मेदारियाँ उस पर होती हैं। हम अपनी सुख-सुविधाओं की बात सोचें पर औरों के प्रति सच्चे हृदय से कर्त्तव्यपालन करने की भी इच्छा करें तभी हमारा भला होगा। जीवन-लक्ष्य की प्राप्ति भी तभी संभव है जब हममें सदिच्छाएँ जाग्रत हों, औरों के प्रति शुभ कामनाओं का विकास हो।

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