आचार्य श्रीराम शर्मा >> कामना और वासना की मर्यादा कामना और वासना की मर्यादाश्रीराम शर्मा आचार्य
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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।
मानव जीवन गतिमान बना रहे इसके लिए स्व-प्रधान इच्छाएँ उपयोगी ही नहीं, आवश्यक भी हैं। पर इनके पीछे फलासक्ति की प्रबलता रही तो उसकी तृप्ति न होने पर अत्यधिक दुखी हो जाना स्वाभाविक है। इच्छाओं के अनुरूप परिस्थितियां भी मिल जाएँगी ऐसी कोई व्यवस्था यहाँ नहीं है। कोई लखपती बनना चाहे पर व्यवसाय में लगाने के लिए कुछ भी पूँजी पास न हो, तो इच्छा पूर्ति कैसे होगी? ऐसी स्थिति में दुखी होना ही निश्चित है।
जो भी इच्छाएँ करें वह पूरी ही होती रहें, यह संभव नहीं। इनके साथ ही आवश्यक श्रम, योग्यता एवं परिस्थितियों का भी प्रचुर मात्रा में होना आवश्यक है। किसी की शैक्षणिक योग्यता मैट्रिक हो और वह कलक्टर बनना चाहे तो यह कैसे संभव होगा? इच्छाओं के साथ वैसी ही क्षमता भी नितांत आवश्यक है। विचारवान व्यक्ति सदैव ऐसी इच्छाएँ करते हैं, जिनकी पूर्ति के योग्य साधन व परिस्थितियाँ उनके पास होती हैं।
इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम जिन परिस्थितियों में आज हैं, उन्हीं में पड़े रहें। जितनी हमारी क्षमता है उसी से संतोष कर लें। तब तो विकास की गाड़ी एक पग भी आगे न बढ़ेगी। आज जो प्राप्त है, उसमें संतोष अनुभव करें और कल अपनी क्षमता बढ़े, इसके लिए प्रयत्नशील हों तो इसे शुभ परिणति कहा जाएगा। नेपोलियन बोनापार्ट प्रारंभ में मामूली सिपाही था। चीन के प्रथम राष्ट्रपति सनयात सेन अपने बाल्यकाल में किसी अस्पताल के मामूली चपरासी थे। इन्होंने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए क्रमिक विकास का रास्ता चुना और अपना लक्ष्य पाने में सफल भी हुए।
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