लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> कामना और वासना की मर्यादा

कामना और वासना की मर्यादा

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9831
आईएसबीएन :9781613012727

Like this Hindi book 0

कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।

महानता की यह यात्रा स्वयं से शुरू होकर पत्नी, बच्चे, परिवार, रिश्तेदार, पड़ोसी, देश, जाति की मंजिलों से गुजरती हुई विश्वात्मा की विराट सत्ता तक पहुँचती है। इस तरह कामना और वासना, लोक संग्रह तथा त्याग, प्रेम और आत्मोत्सर्ग के संतुलित क्रम में विकसित होकर मनुष्य को पूर्ण बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है। देश, धर्म, मानवता के लिए परवानों की तरह जल मरने वाले लोग तत्संबंधी कामना-इच्छा से ही प्रेरित होते हैं। विशेष प्रकार की कामनाएँ ही मनुष्य को समाज सुधार, जन सेवा के लिए तत्पर करती हैं। ज्ञान संग्रह की तीव्र कामना ही मनुष्य के अध्ययन, चिंतन, मनन का आधार बनती है।

आत्म-कल्याण की कामना ही मनुष्य को विभिन्न साधनाओं में प्रेरित करती है। परमात्मा में आत्मा का प्रवेश पाने, आंतरिक प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए भक्त भगवान के नाना रूपों का चिंतन कर उनमें लीन होता है। वस्तुत: ईश्वर प्रेम, भक्ति, उत्कृष्ट और विकसित वासना, प्रेम का ही परिवर्तित स्वरूप है। इन अवस्थाओं में मनुष्य विरह, वेदना, रोमांच, आत्म-प्रणय, निवेदन, समर्पण, आलिंगन आदि उन सभी क्रियाओं की भावनाओं को पोषण देता है, जिन्हें एक प्रेमी और प्रेमिका परस्पर वासना प्रेरित होकर अपनाते हैं। किंतु एक उत्कृष्ट भावना, आत्माभिव्यक्ति की निर्मल और उन्मुक्त धारा है तो दूसरी व्यक्तिगत प्रेम की सीमित शारीरिक-मानसिक उत्तेजनाओं को शांत करने वाली स्थूल प्रक्रिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book