आचार्य श्रीराम शर्मा >> कामना और वासना की मर्यादा कामना और वासना की मर्यादाश्रीराम शर्मा आचार्य
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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।
कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है। अपने शुद्ध स्वरूप में मनुष्य की कोई भी वृत्ति निंदनीय नहीं है, वरन एक प्रकार से आवश्यक और उपयोगी मानी जाती है। जीवन रक्षा और जीवन विकास के लिए कामना तथा इच्छा का होना अनिवार्य है। इनके बिना तो किसी में कुछ करने का उत्साह ही पैदा नहीं होगा और मनुष्य फिर कष्टसाध्य प्रयत्न, श्रमशीलता में संलग्न ही क्यों होगा।
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