ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक वनस्पतियाँ चमत्कारिक वनस्पतियाँउमेश पाण्डे
|
0 |
प्रकृति में पाये जाने वाले सैकड़ों वृक्षों में से कुछ वृक्षों को, उनकी दिव्यताओं को, इस पुस्तक में समेटने का प्रयास है
औषधिक उपयोग
(1) मुख रोगों पर - उसकी जड़ को दाढ़ के नीचे रखकर उसका रस लेने पर मुख रोग दूर होता है।
(2) प्रमेह रोग में - कंकाल का चूर्ण शक्कर के साथ लेने पर प्रमेह रोग दूर होता है।
(3) भूख मर जाने पर - कंकोल की मूल और थोड़े से कपूर को मुख में लेकर बाहर गिराते है, तथा इसे निगलते नहीं हैं।
(4) मूत्र कृच्छ में - कंकोल की मूल चूसने से लाभ होता है।
(5) मुख दुर्गन्ध दूर करने हेतु - कंकोल के फल की थोड़ी सी मात्रा को मुख में लेकर चूसना चाहिये।
(6) हृदय पुष्टिकरण हेतु - इसके फल की एक ग्राम मात्रा का सेवन कुछ दिनों तक करना चाहिये। इसका अधिक सेवन किडनी को नुकसान करता है।
(7) नेत्र विकारों में - इसके फल को पीसकर नेत्र के आसपास लेपित करने से लाभ होता है।
वास्तु में महत्त्व
इसका घर में दक्षिण तरफ होना शुभ है।
* * *
|