ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक वनस्पतियाँ चमत्कारिक वनस्पतियाँउमेश पाण्डे
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प्रकृति में पाये जाने वाले सैकड़ों वृक्षों में से कुछ वृक्षों को, उनकी दिव्यताओं को, इस पुस्तक में समेटने का प्रयास है
सिंघाड़ा (श्रृंगाटक)
विभिन्न भाषाओं में नाम-
संस्कृत - श्रृंगाटक जलफल, त्रिकोणफल।
हिन्दी - सिंघाड़ा
बंगाली - पानीफल।
मराठी - शिगाड़ा।
गुजराती - शींघोड़ा।
पंजाबी - गौनरी।
अंग्रेजी - वाटर केल्ट्राप (Water Caltrop),
इण्डियन वाटर चेस्टनट (Indian Water Chestnut)
लैटिन - Trapa natans Trapa bispinosa (Roxbi) Makino.
कुल - श्रंगारक कुल (ओनाग्रासी Onagraceae)
सिंघाड़ा के जलीय पौधे पानी पर तैरते रहते हैं। पत्तियाँ तने के ऊपर की ओर एकान्तर में क्रम में स्थित होती हैं। जो 1/1/2 से 2 इंच लम्बी और इतनी ही चौड़ी होती हैं। एवं आकार में चतुष्कोणाकार होती हैं। आगे का ओर पत्रतर सूक्ष्म होता है। तने बैंगनी रंग का तथा सघन रोगों से युक्त होता है। पत्रकृत पहले छोटा होता है। जो बाद में बढ़कर 4 से 6 इंच लम्बा हो जाता है। फूल सफेद रंग के होते हैं। जो पत्तियों के कोनों से निकलते हैं। और छोटे परन्तु मोटे वृन्तों पर लगे होते हैं। फल लगने से वृन्त नीचे मुड़ जाते हैं। जिससे वह जल में लटकते रहते हैं। फल चपटे 1 इंच लम्बे तथा चौड़े होते हैं। फल का छिलका कड़क तथा कच्चे फल का हरा तथा पक जाने पर काले रंग का हो जाता है। इसके दोनों ओर काँटे होते हैं। फूल के बीच में आगे की ओर एक चोंचदार नुकीला उत्ताघ होता है। जिसके नीचे
आदी मूल या मूलाकर होता है। छिलका निकालने पर नीचे मज्जा निकलती है। जो कच्चे फलों में सफेद, मुलायम और रसदार होती है। सूखे हुए तथा पके हुए फलों में कड़ी रक्ताभवर्ण की, देखने में सुरजांन जैसी लगती है। कच्चे फलों को उबालकर खाया जाता है। पके हुए फलों की गिरी का आटा बनाकर इसका उपयोग विभिन्न कार्यों जैसे-हलवा, रोटी आदि के रूप में किया जाता है।
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