ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक वनस्पतियाँ चमत्कारिक वनस्पतियाँउमेश पाण्डे
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प्रकृति में पाये जाने वाले सैकड़ों वृक्षों में से कुछ वृक्षों को, उनकी दिव्यताओं को, इस पुस्तक में समेटने का प्रयास है
समस्त भारतवर्ष के उष्ण प्रदेशों में 25 फीट की ऊँचाई तक इसकी कँटीली लताएँ पाई जाती हैं। बगीचों में पेड़ पर इसकी झाडी भी लगाई जाती है। इसके शुष्क-पक्व बीज बाजारों में पंसारियों के यहाँ बिकते हैं।
आयुर्वेदानुसार यह एक तूरी, कड़वी, उष्ण स्वभाव वाली वनस्पति है। यह कफ, पित्त एवं अर्श, शूल, सूजन, अध्यमान, व्रण, प्रमेह कुष्ट रोग, कृमि रक्तार्श, वात-अर्श एवं रक्तदोष नाशक है।
ओषधिक उपयोग
(1) सूजन पर- इसके पत्ते तथा आँकड़े के पत्ते साथ-साथ पीसकर गर्म करके लेप करने से 3 दिन में सूजन दूर हो जाती है।
(2) उपदंश पर- इसके पत्तों का रस निकालकर उसमें घी मिलाकर मात्र 1 चम्मच 7 दिनों तक सेवन करने से आराम मिलता है। (वैद्य के निर्देश के अनुसार)
(3) कृमि रोग पर- इसके पत्तों के रस में आमा हल्दी घिसकर पिलाने से लाभ हाता है। अथवा पत्ते को सेंककर चूर्ण में घी मिलाकर सेवन करने से आराम मिलता है।
(4) वायुगोला पर- इसके पत्ते सेंककर, उसका चूर्ण बनाकर गुड़ में मिलाकर खाने से लाभ मिलता है।
(5) जीभ के छालों पर- पत्तों के रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर लेने से लाभ मिलता है।
(6) बुखार पर- किसी भी तरह के बुखार पर इसके बीजों की गिरी बहुत लाभदायक है।
(7) आमवात पर- इसके पत्तों के चूर्ण में शक्कर मिलाकर 4 महीने तक लेने से परम लाभ होता है।
वास्तु में महत्त्व
घर की सीमा में इसका होना अशुभ नहीं है।
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