जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
नारायण हेमचंद्र
इन्ही दिनों स्व. नारायण हेमचन्द्र विलायत आये थे। लेखक के रुप में मैंने उनका नाम सुन रखा था। मैं उनसे नेशनल इंडियन एसोसियेशन की मिस मैंनिंग के घर मिला। मिस मैंनिंग जानती कि मैं सब के साथ हिलमिल नहीं पाता। जब मैं उनके घर जाता, तो मुँह बन्द करके बैठा रहती। कोई बुलवाता तभी बोलता।
उन्होंने नारायण हेमचन्द्र से मेरी पहचान करायी। नारायण हेमचन्द्र अंग्रेजी नहीं जानते थे। उनकी पोशाक अजीब थी। बेडौल पतलून पहले हुए थे। ऊपर सिकुड़नों वाला, गले पर मैंला, बादामी रंग का कोट था। नेकटाई या कॉलर नहीं थे। कोट पारसी तर्ज का, पर बेढंगा था। सिर पर ऊन की गुंथी हुई झल्लेदार टोपी थी। उन्होंने लंबी दाढ़ी बढ़ा रखी थी।
कद इकहरा और ठिंगना कहा जा सकता था। मुँह पर चेचक के दाग थे। चेहरा गोल। नाक न नुकीली न चपटी। दाढी पर उनका हाथ फिरता रहता। सारे सजे धजे लोगों के बीच नारायण हेमचन्द्र विचित्र लगते थे और सबसे अलग पड़ जाते थे।
'मैंने आपका नाम बहुत सुना हैं। कुछ लेख भी पढ़े हैं। क्या आप मेरे घर पधारेंगे?'
नारायण हेमचन्द्र की आवाज कुछ मोटी थी। उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया, 'आप कहाँ रहते हैं?'
'स्टोर स्ट्रीट में'
'तब तो हम पड़ोसी हैं। मुझे अंग्रेजी सीखनी हैं। आप मुझे सिखायेंगे?'
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